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एहसास को समझूँ - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

एहसास को समझूँ

  • 123
  • 5 Min Read

मेरे घर पर आज छत है
इसे में देव की देन समझूँ,
जिसके ऊपर उपकार नहीं
उसके आज हर एहसास को समझूँ।

कोई तन पर बिखरे पसीने को पोछें ,
कोई तन पर मेहनत का रंग चढ़ाता है।
भीषण तप मेँ रहकर भी कोई,
मुस्कराना दर्द को छिपाकर जानता है।।

किसी को कड़ी धूप भी छत लगे,
कोई उसी छत को मंजर मानता है।
कोई नंगे पाँवो से राहें बनाये,
तो कोई चादर की सड़क माँगता है।

कोई पानी को हवाओं की तरह,
खुले हाथों से बह जाने देता है।
कोइ एक बूँद को साँसो की तरह,
अपने गले में उतार लेना चाहता है।

साथियों को साथ लेकर कोई ,
मगन शाम की मस्ती में डूबता है।
कोई सूखे मुँह से किसी के इँतजार में ,
अपनी शाम ,किस्मत के नाम करता है।।

कोई किताबों को हवा में उछाल,
केद की चँद लकीरें समझता है।
कोई एक अक्षर पढ़ने के लिए भी,
अपनी बेबसी से नजरें चुराता है।।

यूँ ही इसी तरह कई सवाल उठकर,
खामोशियो में दबे कहीं जवाब ठहरें हैं।
चलो अब नजरिये को थाम इस एहसास को समझें
जिस पर छाया की मेहर नहीं,
उस पर बरसे हर वार कितने है?
शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया सर

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