Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ऐसा एक ख़्याल है - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

ऐसा एक ख़्याल है

  • 205
  • 4 Min Read

ऐसा एक ख़्याल है
कि कभी रोज जब ये सूरज नहीं दिखेगा
बादलों के सहारे जब उजा़ला बिखरेगा
मन में इश्रत की चाह भी फीकी सी होगी
तब राहें तो दिखेंगी
जहाँ जाना है वो मंजिलें भी होंगी
ईर्द गिर्द की हलचल भी नज़र में होंगी
कौन क्या कहता है, ये ख़बर भी होगी।

लेकिन मन विहवल है
आज मन जरा जरा खींचा खींचा सा है
रास्ते तो वही हैं
लेकिन सफर धुंधला धुंधला सा है

यहां से अब मंज़िल
और कितने दूर है, मालूम नहीं
आसमान में बिखरे बादल
साथ साथ और कितने दूर है ,मालूम नहीं

ख्याल यह भी है कि जिस जा रहे
उस और कोई रोशनी हो,
खुला आसमान हो, बेहतर जिंदगी हो
पर लगता है,
कि असलियत इससे कहीं दूर है
क्योंकि मंजिलें, जिन्हें कभी नहीं देखा
ऐसी ख्वाइशें बादलों के पीछे
फलक और उफ़्क के दरमियान, बहुत दूर है
जीने केवल सोचा तो जा सकता है
लेकिन कभी देखा नहीं और
ना ही कभी छुआ जा सकता है
ऐसा सफर, एक ख्याल यह भी है।

1609049242.jpg
user-image
Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

सुंदर

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
विदेशी शहर
IMG-20240518-WA0017_1716097452.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
logo.jpeg