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ये वो शाम है - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ये वो शाम है

  • 181
  • 4 Min Read

यह वो शाम है,
जब आफताब उफ्क़ के पीछे छुपता जाता है
तो फलक के कई राज़ खोल देता है।

जब नज़र के सामने, फलक का एक टुकड़ा
हल्के नीले आसमानी रंग से
गहरे अंधेरे की ओर बढ़ता है,
तब ढलता हुआ वो दिन का पहरेदार
धीरे-धीरे अपने

गर्म लिवाज़ को समेटता जाता है,
तो इन सिमटती हुई हलचल से
एक नर्म सर्द हवा मचलने लगती है
और उभरता हुआ
वदि के आख़िर का चाँद
ऐसे झलकता है
कि जैसे आसमान

घड़ी दर घड़ी
घटते हुए लम्हों में
मिहिर से बने अधरों से
एक हँसी को हँस रहा हो,
तब तुम और मैं
यहां सुकुन से बैठे हुए

चाहे ग़ौर करें या ना करें
लेकिन ये ख़ूबसूरत शर्वरी
पल पल मुस्करा रही है,
मगर तब तक
जब तक की मेरे और तुम्हारे ज़ज़्बात

यूँ आफताब की तरह
छिपते ना चले जाएं।

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

वाह

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया मेम

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