कवितालयबद्ध कविता
एक छोटा सा अर्भक हूँ मैं,
मुझे अपने हाथो से उठा लो
अपने प्यार की छाँव में,
मेरे सारे घाव भर दो।
गिरा हूँ जमीन पर
इसे मेरा बिस्तरा बना दो,
दर्द है एक सीने में
मुझे चैन की चादर ओढ़ा दो।
छलनी हुए हैं मेरे हाथ
इनसे जख्मों का जाल हटा दो,
तूफान भी चला आए अगर
इन बाजुओं में वो साहस का दम भर दो।
भीड़ चलूँ उस वक्त से
जिसे ठुकराता मैं चला जाऊँ,
मुसीबत भरी सुनामी को
मैं प्यासे की तरह पीता चला जाऊँ।
पथ पर अकड़ते काँटो को
वैजंती का गुलाम बना दो,
अगर शूल भी जो फूल में बदल जाए
तो उस उस फूल को मेरा हमराही बना दो।
दूर फेंक तम को
रोशनी तलाशता मैं जाऊँ,
नयन खुले तो नींद से
सवेरे का पहर नज़रों पर पाऊँ।
न शक्ल हो न सूरत हो
मुझमे कोई ऐसा जादू भर दो,
लिखावट से रुप झलक जाए
चाहें शक्लों पर एक झूठा नकाब हो।
नज़रें नदी की तीर बन जाएं
शीत जल का बहाव मिल जाए,
निहार लूँ उस रास्ते को
जिस पर मेरा शरीर बहता चला जाए।
क्या मागूँ मै अब?
कुछ कर गुजरने की क्षमता भर दो,
हासिल तो बहुत बड़ी चीज है
मेहनत का प्याला मुझे पीला दो।
गुहार है ये उम्र भर की
तन को मेरे सदृढ़ कर दो,
आँखो की आभा मिले
अहंकार का रास्ता बंद कर दो …..।
…. शिवम