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लोकडाउन के वीर भाग -2 - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

लोकडाउन के वीर भाग -2

  • 380
  • 23 Min Read

ठेकेदार के फोन रखते ही सामने से सुक्खी की मां एक महिला को लेकर आ धमकती है।
‘ जी कहिये’
‘ जी मेरे पति सुबह से गायब हैं। उनका फोन भी नही लग रहा है।’
‘ जी देखिये अभी 12 बजने वाले है, इंतजार करिये , क्या पता सुबह होते होते वो भी आ जाएं।’
‘ नही वो कभी ऐसा नही करते। सुबह काम पे जाने के बाद से वो वापस ही नही लोटे।’
‘ ठीक है आपके पति का नाम क्या है?’
‘ जी सिराज सब प्यार से उसे सीटू कहते थे और वह ठेकेदार अखिल के यहां काम करता है।’

सिराज का नाम सुनते ही भूपेंद्र समझ जाता है कि ये वही शख्स है जिसका कत्ल हो चुका है। वह चुप हो जाता है और रजिस्टर में सारी जानकारियां लिखकर रिपोर्ट दर्ज कर लेता है। उनके चले जाने के बाद भूपेंद्र ठेकेदार को फोन करता है और सब बताता है। अपना नाम होने की वजह से अखिल रिपोर्ट को छुपाने के लिए कहता है, तो भूपेंद्र उस रिपोर्ट को किसी के नज़र में आने से पहले ही उस पन्ने को निकाल लेता है और अपने पास रख लेता है।
उधर अपने पति को खोज रही शगुन काफी परेशान एक जगह बैठने का नाम नही ले रही थी।
‘ अरे शगुन एक जगह बैठ जा रिपोर्ट लिखवा दी है। पुलिस उसे ढूंढ लेगी और वेसे भी वह गांव से बाहर कहां जाएगा।’
‘ हां वो पुलिस उसे ढूंढ लेगी। लेकिन तेरा बेटा भी तो उसी ठेकेदार के यहां काम करता है ना। उससे पूछ शायद कुछ पता चले।’
‘ क्या? मुझे नही मालूम। उसने कभी अपने ठेकेदार के बारे में नही बताया।’
‘ हां ठेकेदार अखिल के यहां ही काम करता है। मेरे पति ने उसको राम और गोपाल को भी उसके साथ देखा है।’
‘ ठीक है सुबह आएगा तो मैं पूछ लुंगी।’

शगुन चुप हो जाती है । तभी उसे याद आता है कि सिराज कभी कभी एक निर्माणाधीन इमारत की बात किया करता था जो ज्वाला पुर के पास में है। वह वहां पर जाने के लिए जिद्द करती है। सुक्खी की मम्मी उसे समझाती है पर वह कुछ ना सुनते हुए उठ कर जाने लगती है। सुक्खी की मम्मी उसे पकड़ती है कि तभी गोपाल और राम के माता पिता भी वहां आ जाते हैं।पड़ोसी होने के नाते वह भी फिक्र जाहिर करते है। सुक्खी के पापा पास जाते है और शांत रहने के लिए कहते है। पर वह बिल्कुल अधीर होकर बड़बड़ाने लगती है, तो सभी फैसला करते हैं कि सिर्फ आदमी आदमी पहले वहां जाकर देख आते हैं।


राम , गोपाल और सुक्खी के पापा उसी निर्माणाधीन इमारत की ओर चल देते है। भूपेंद्र भी अपनी बाइक लेता है और ज्वालापुर के लिए निकल पड़ता है। रात के करीब 1 बज जाते है। सुक्खी और उसके दोस्त भी बताई हुई जगह पर पहुंच जाते है। पर वहां पर कोई नही मिलता। तभी सामने से आ रही कुछ गाड़ियां दिखती है । जैसे ही वह पास आकर रुकती है तो तीनों के होश उड़ जाते है। अपने अपने पापा को सामने देखकर तीनों शरीफ की तरह खड़े हो जाते है।
' तुम तीनो यहां पर क्या कर रहे हो?'
' हम तो बस ऐसे ही थोड़े मजे कर रहे थे।'
'अच्छा ठीक है,, क्या तुमने यहां कहीं सिराज को देखा?'
'कोन सिराज?'
'तुम्हारा पड़ोसी नालायकों'
'अच्छा सीटू, वो यहां क्या करेगा ।'
' तो क्या क्रेशर पर कल या परसों में देखा?'
' नही,, होश ही नही रहता तो क्या देंखें'
'क्या?'
'कुछ नही'

तभी भूपेंद्र भी वहां पहुंच जाता है। वह दूर से देख लेता है कि वहां ट्रक तो है लेकिन कुछ लोगों का जमावड़ा भी है। वह अखिल को फोन करता है
' हेलो अखिल तुमने तो कहा था कि बस तीन लड़कें हैं पर यहां तो पूरी पलटन है।'
' क्या पूरी पलटन, अब ये कोन है? ठीक है मैं अभी पहुंचता हूँ।'

भूपेंद्र अपनी बन्दूक निकाल लेता है और आगे बढ़ता है। भूपेंद्र सभी को डराकर पीछे होने के लिए कहता है।तभी गोपाल राम के कान में फुसफुसाता है
' अबे ये वही सिराज तो नही जो डम्पर में है।'
' हैं,,, नही यार मेरे इतने भी बुरे दिन नही आये ऐसी बात ना कर।'
' तूने उसका चेहरा देखा था?'
' नही'

भूपेंद्र सब पे गन ताने ही रहता है और सबके तारीफ सुन ही रहा होता है कि आख़िल भी वहां आ पहुंचता है। अखिल भूपेंद्र को इशारा करता है और भूपेंद्र सबकी तलाशी लेते हुए सुक्खी को डम्पर दिखाने के लिए कहता है । तीनो मूर्ति की तरह एक जगह सुन्न रह जाते है। भूपेंद्र एक बार और धमकाता है तो सुक्खी जाकर डम्पर उठाने लगता है। धीरे धीरे करके लाश नीचे गिरती है। सभी देखकर दंग रह जाते हैं। भूपेंद्र तीनों पर बंदूक तान देता है तभी गोपाल बोल पड़ता है कि यह इस ठेकेदार का काम है। अखिल पीछे से तीनों को मारने के लिए कह देता है। तीनों के पापा को विश्वाश नही होता और वह रुकने के लिए कहने लगते है। भूपेंद्र उन्हें धमकाता है पर सुक्खी के पापा अपना दम दिखाते हुए भूपेंद्र के ऊपर चढ़ जाते है। तीनों को बहुत अफसोस होता है कि जिन मां बाप के खिलाफ वह रहते थे, वही आज उनके लिए लड़ने के लिए तैयार है।
अखिल यह देखकर परेशान हो जाता है और पीछे से एक रॉड उठाकर उनकी तरफ बढ़ने लगता है। राम और सुक्खी उसे देखते ही उसे धक्का देकर नीचे गिरा देते है। पुलिस से छीना झबटी में अनजाने ही गोली चल जाती है और सुक्खी के पापा को लग जाती है। सुक्खी अपने पापा को सम्भालता है। वह भूपेंद्र कीओर मुड़ता है और पूरी ताकत से उसे धक्का देता है जिससे बन्दूक छलक कर नीचे गिर जाती है और भूपेंद्र सीधे सरिये में जा लगता है। अखिल सुक्खी की ओर बढ़ता ही है कि गोपाल झट से बन्दूक उठाकर अखिल पर चला देता है। महज कुछ सेकंड में देखते ही देखते कई लाशें बिछ जाती है। राम, गोपाल और सुक्खी को सम्भालता है और तीनों वहां से भाग निकलते हैं।

शिवम राव मणि

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

वाह बहुत खूब 👌🏻

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

दादी की परी
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