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बिखर गए एहसास - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बिखर गए एहसास

  • 221
  • 4 Min Read

बिखर गए अहसास जैसे
कागज़ों के ढेर थे
बिखर गए अहसास जैसे
किताबों के बगैर थे
बिखर गए है अहसास जैसे
अतीत के दरपन थे
बिखर गए अहसास जैसे
रुकी हुई धड़कन थे

बिखरते रहे हर नौबत में ऐसे
कि शाख से फूल अलग थे
बिखरते रहे बार-बार, शराफत में ऐसे
कि चराग के नीचे, अंधेरे अज़ल थे

बिखरे हैं, तो हवाओं में धूल के कण
बिखरे हैं, तो मुट्ठी से फिसलते क्षण
यूँ ही बिखर जाते है अहसास
इल्ज़ाम लगाने से
बिखर जाती हैं कई कयास
उम्मीद के सिरहाने से

बिखरते तो है फुरसत के पल
बेचैनीयों में ऐसे
कि लगता है
गिरते आसमान के तारों से
कितने अनजान थे
बिखर गये अहसास ऐसे
कि खुशबओं के तसव्वुर थे
बिखर गये अहसास ऐसे
कि महकें, मगर कई बेखबर थे

शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

लाजवाब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया सर

प्रपोजल
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