कविताअतुकांत कविता
किसी से घृणा का भाव
सदेव उस मार्ग की ओर ले जाता है
जहां एक छोटी, परंतु तीक्ष्ण किरण
हमारे उस विचार को उजागर करती है
जो क्रोध में आकर उपज तो गया है
लेकिन वास्तविकता के सरीखी है भी या नहीं
यह मालूम नहीं होता।
लेकिन धीरे-धीरे हमारी ना समझी ही
उस छोटी सी किरण से
उस अग्नि की ओर ले जाती है
जहां दूसरों के प्रति मन में उठ रहे
अल्हड़ विचार
सामने जल रही ज्वाला के स्वरुप
धधकने लगते हैं।
तब एक छोटा सा कटाक्ष भी
भीतर घूंट रहे सभी मंतव्यों को
वर्तमान कि मेदिनी पर ला पटकती हैं
जिधर अपनों का कथित
हर एक शब्द ,
उनकी हर एक हलचल
क्रोध की लपटों को हवा देकर
बड़े ही तल्लीन से सहेजी हुई
धैर्य की दीवार को ढहा देती है
और एक प्रेम का सान्निध्य
चाहें वह किसी का भी हो
शनैः शनैः राख हो चला जाता है।
शिवम राव मणि©
शिवम जी क्या आप साहित्य अर्पण पर आपका फोन नम्बर इनबॉक्स कर सकते हैं।
जी बिलकुल मेम