कवितागजल
बीते वक्त को नज़र कर रहा हूं।
क्या ग़म है, ज़रा जीकर कर रहा हूं।
हाल पर कुछ कहने दिया सभी को,
बस सुनकर वही ख़बर कर रहा हूं।
इतना भी कभी दर्द ये रहा के,
अब हर ज़ख्म पे फिकर कर रहा हूं।
एक एहसास होता नहीं जुदा मुझसे,
शायद दूर तक सफर कर रहा हूं।
आता है कभी याद वो सबब भी,
जिसके तर्स पर बसर कर रहा हूं।
माना कि ख़ुदा भी खफा नहीं था,
तब भी यह शहर,सहर कर रहा हूं।
चुभती है'मनी', कि हर बात इसलिए,
खुद को इधर से उधर कर रहा हूं।