कहानीलघुकथा
जब एक नादां दिल ने बुजुर्ग दिल से पूछा कि एक मां का दर्ज़ा इतना ऊंचा क्यों होता है, तो उस बुजुर्ग दिल ने वक्त का पहिया थामकर अपनी गति को रोक लिया और अतीत के धड़कनों में से कुछ धड़कनों को जिंदा करके , उस नादां दिलको सौंप कर चला गया।उसने कहा था कि इन धड़कनों में तुम्हारा जवाब है। नादां दिल बहुत खुश हुआ। उसने धड़कनों को सुनना शुरू किया लेकिन वो हैरान हुआ। उसने उन्हें फिर सुना, वह परेशान हुआ। उसने तिबारा सुना पर कुछ समझ नही आया। सुनते सुनते बहुत वक्त बीत गया और नादां दिल अब बूढा, बुजुर्ग दिल हो चुका था। लेकिन मां शब्द की आहट उसे समझ नही आयी। क्योंकि जिस शब्द के लिए वह स्पंदन को सुन रहा था , असल में वह कभी उस शब्द पर धड़का ही नही। वो तो बस सवाल उठाता रहा, दूसरों का वजूद पूछता रहा। वह कितना अनजान है मां शब्द से, उसे समझ में आने लगा। अंततः उस बुजुर्ग दिल की बात याद आयी जो जाते जाते कह गया था कि, एक मां का दर्जा कभी समझाया नही जा सकता, पर तुम्हे समझना है तो एक बार पूरी भावना से मां शब्द पर धड़कना ज़रूर। तब वह नादां दिल सभी गैर स्पंदनों को छोड़कर रोने लगा और इतना रोया कि वह अपने बेकाबू स्पंदनों के आखिर में मां शब्द पर जोर से धड़का और उसके बाद हमेशा के लिए रुक गया…...एक अकल्पनीय ममता की छांव में।
शिवम राव मणि