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मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं? - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितागजल

मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?

  • 155
  • 3 Min Read

मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
वक़्त के किनारे समझूं या क्या समझूं?

रुककर अब तो बैठे है,सुकून भर कहीं
राह पर मजारे समझूं या क्या समझूं ?

सोचता हूं ऐसा होता तो क्या होता?
जिंदगी दीवारें समझूं या क्या समझूं?

शोर है एक, मन के हर दर- दरवाजों पर
हैरत गलियारे समझूं या क्या समझूं?

भूलते गए जिन्हें अब याद आते है
सफर के नजारे समझूं या क्या समझूं?

मुद्दत – ओ बाद कहीं तारा झिलमिलाता है
फलक के सितारे समझूं या क्या समझूं?

कितनी ही लकीरें ‘मनी’ बनकर बिखर ग‌ई
हाथ में दरारे समझूं या क्या समझूं?

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

भावपूर्ण है। नुक्ता लगाने से और भी संवर जाती।माफ़ करना शीर्षक में इसे इशारा या इन्हें इशारे ।ह

शिवम राव मणि3 years ago

जी धन्यवाद आपका। जरूर ध्यान दूंगा

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

आपकी हर रचना को रस धारें समझूँ, और अगर नहीं तो क्या समझूँ तो

शिवम राव मणि3 years ago

जी शुक्रिया आपका

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

आप नाम से दक्षिण भारतीय लगते हैं, फिर भी आपकी हिंदी रचना अद्भुत है. वैसे मैं भी चालीस वर्षों से आंध्र प्रदेश के राजमंद्री में रह रहा हूँ

शिवम राव मणि3 years ago

जी नहीं सर , दरअसल मैं उत्तर भारत से हूं। मेरा आखिरी नाम ' मनी' , मेरे पापा ने रखा है, लेकिन क्यूं रखा था मुझे यह नहीं मालूम

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत बढ़िया

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

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