कवितागजल
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
वक़्त के किनारे समझूं या क्या समझूं?
रुककर अब तो बैठे है,सुकून भर कहीं
राह पर मजारे समझूं या क्या समझूं ?
सोचता हूं ऐसा होता तो क्या होता?
जिंदगी दीवारें समझूं या क्या समझूं?
शोर है एक, मन के हर दर- दरवाजों पर
हैरत गलियारे समझूं या क्या समझूं?
भूलते गए जिन्हें अब याद आते है
सफर के नजारे समझूं या क्या समझूं?
मुद्दत – ओ बाद कहीं तारा झिलमिलाता है
फलक के सितारे समझूं या क्या समझूं?
कितनी ही लकीरें ‘मनी’ बनकर बिखर गई
हाथ में दरारे समझूं या क्या समझूं?
भावपूर्ण है। नुक्ता लगाने से और भी संवर जाती।माफ़ करना शीर्षक में इसे इशारा या इन्हें इशारे ।ह
जी धन्यवाद आपका। जरूर ध्यान दूंगा
आपकी हर रचना को रस धारें समझूँ, और अगर नहीं तो क्या समझूँ तो
जी शुक्रिया आपका
आप नाम से दक्षिण भारतीय लगते हैं, फिर भी आपकी हिंदी रचना अद्भुत है. वैसे मैं भी चालीस वर्षों से आंध्र प्रदेश के राजमंद्री में रह रहा हूँ
जी नहीं सर , दरअसल मैं उत्तर भारत से हूं। मेरा आखिरी नाम ' मनी' , मेरे पापा ने रखा है, लेकिन क्यूं रखा था मुझे यह नहीं मालूम