कवितालयबद्ध कविता
कलियो से जो फूल खिले
उसे तोड़ने के लिए, लालायित हूँ मै
पन्ने उधेड़ दिए है जो किताबो से मैने
उसमे कुछ छिपाकर लिखने के लिए , लालायित हूँ मै
ख्वाबों की मिट्टी जो खोदी है मैने
उसमे कुछ यादे बोने के लिए, लालायित हुँ मै
उसमे पानी पड़े या न पड़े
कैसा है? यह देखने के लिए, लालायित हूँ मैं
आसमां से ओझल हो गया जो तारा
मानो आलिंगन कर रहा हो मेरा
छिपा है किसी के पिछे दुबक कर
बादल है या दिनकर
यह जानने के लिए, लालायित हूँ मैं
सूरज की हर पहली किरण को
अपनी छवि मे बटोरने के लिए, लालायित हूँ मैं
आत्मा सोई हुई हो तो क्या?
किरणों का पहला कदम हो जिस तरफ
रुह के उस कोने को जगाने के लिए, लालायित हूँ मैं
— शिवम.राव मणि
सुन्दर रचना..! वैसे शायद' लालायित और आलिंगन' '' सही शब्द हैं
जी शुक्रिया