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लालाजी की दुकान (मोक्स या मास्क) - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कहानीव्यंग्य

लालाजी की दुकान (मोक्स या मास्क)

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शिवम राव मणि
कहानी

मेरे ज्ञान चक्षु उस वक्त डगमगा ग‌ए जब मैंने एक शब्द सुना ‘ मोक्स’।यह मास्क से मिलता-जुलता तो है लेकिन लगा नहीं। मुझे लगा मास्क और मोक्स में अन्तर तो होगा ही।
एक बेढंगा सा आदमी, थोड़ा परेशान लालाजी
के दुकान के बाहर रखे तख्त पर आकर बैठता है।कहता है, वहां चौक पर पुलिस वाले बिना मोक्स वालो को रोक रहें हैं। मैं सोच में पड़ गया कि पुलिस वाले रोक तो रहें हैं, लेकिन ये मोक्स क्या है? तभी लालाजी के दुकान के पास का हजामती भी आ जाता है। अब उसका चरित्र कुछ यूं समझ लीजिए कि चालाक मगर चाटुकर भी।
एक बार लालाजी ने अपने और अपने दोस्त के लिए बीड़ी सुलगाई। एक बीड़ी अपने दोस्त को थमाई ही थी कि लालाजी के उंगलियों में से बड़ी तल्लीनता से हमारे हजामती भाई ने बीड़ी सरकाकर अपने मुंह में दबा ली। अब इस पर लालाजी भी क्या करते, दूसरे के मुंह का निवाला थोड़े ही छीन लेते। वेसे वह पेशे से लोगों की हजामत तो करता था, लेकिन कभी-कभी कोई ना मिलने पर किसी राहगीर को ही पकड़ भला-फुसलाकर जबरन हजामत भी कर दिया करता था। यह उसकी खासियत भी थी।
अब वो आया उसने भी सुना कि पुलिस वाले बिना मोक्स वालो को रोक रहें हैं।यह सुन वो भी किसी पीड़ित की भांति अपनी दास्तां सुनाने लगा, लेकिन वह मोक्स वाली जगह पर मास्क कह रहा था। ऐसे ही एक और दिन कोई जान पहचान का लालाजी के दुकान पर आता है। मुंह में दिलबाग चबाते हुए लालाजी से कहता है (मेरे पहली बार सुनने में),” अरे लालाजी, अगर आपके पास मोक्ष हो तो दे दो, मैं यहीं चौक तक जा रहा हूं, अभी आकर लौटा दूंगा।”अब यहां पर मैं फिर से सोच में पड़ गया। भला यह किस प्रकार के मोक्ष की बात कर रहा है, जिसके द्वारा थोड़ी दूर जाएगा भी और वापस आकर लौटा भी देगा। ये तो ठीक वैसा हुआ ना कि आप मृत्यु के दर्शन भी करो और हाय-हैलो बोलकर वापस भी आ जाओ, और यदि मोक्ष मांगना ही था तो भगवान से मांगता लालाजी से क्यूं मांग रहा है।
मैं इस सन्दर्भ में कुछ और सोचता कि तभी लालाजी ने जवाब देते हुए कहा,” क्या? मास्क, अरे भाई मैं तुम्हें अपना मास्क कैसे दे दूं? तुम्हें कहीं जाना है तो अपना मास्क इस्तेमाल करो ना या नहीं है तो खरीद लो।”
बस, लालाजी की सिर्फ यही बात सुनकर मेरे क‌ई दिनों से डगमगाए हुए ज्ञान चक्षु स्थिरता पाने लगे। समझ में आने लगा कि गुटखा चबाते हुए जो इस भले मानुष ने मोक्ष कहा, दरअसल वो मोक्स है, जिसे जब कहा जाता है तो मास्क ही समझा जाता है। मैंने जितनी जल्दी हो सके इसे अपने शब्दकोश में जोड़ लिया और धन्यवाद इस लोकडाउन का कि मुझे एक नया शब्द सिखने को मिला ‘मोक्स

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