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हरे हरे नोट - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

हरे हरे नोट

  • 394
  • 13 Min Read

दादी तिलमिलाते हुए अपने घर के बरामदे में आई और कोने में पड़ा एक लाठी उठाकर, बाहर लगे पेड़ पर चढ़े बच्चों पर चिल्ला उठी

' अरे ओ नालायकों अभी के अभी मेरे पैड़ पर से नीचे उतरो नहीं तो किसी की खैर नहीं , और इन पत्तों को तोड़ना बंद करो। अरे सुनील के लड़के तुझे सुनाई नहीं देता क्या?'

'अरे दादी यह पत्ते नहीं,,, हरे-हरे नोट हैं नोट।'

'बेशर्म तू तो अभी नीचे उतर, तुझे अभी बताती हूं । इतनी मेहनत से इस पेड़ का ख्याल रखा और तुम सब खराब कर रहे हो।और तु भी इन सब के साथ लगा हुआ है।'
दादी अपने पोते को डांटती है।

' अरे दादी जी कार्तिक पर गुस्सा क्यों होते हो,खेलने दो ना हमारी इस कोलोनी में एक आपके यहां ही तो पेड़ है।'

' अगर पेड़ की इतनी लालसा है तो बाहर पार्क में क्यों नहीं चले जाते?'

तभी नीचे बैठी एक बच्ची ने एक दम जवाब दिया

'पार्क बहुत दूर है, मम्मी मना करती है।'

' अरे वाह वाह, तो क्या मैं तुम लोगों की जाकर के सिफारिश करूं , हैं? मैंने तुम्हारे मां बाप को कहा था कि वो घर नहीं खंडहर बनाएं , हैं?'

' अरे यार मेरा घर तो खंडहर नहीं है, वह तो अच्छा खासा है, तेरा घर है क्या टोनी?'

' अरे नहीं यार इतनी अच्छी प्लास्टर करवाई है और दिवाली में तो रंगाई भी होने वाली है।'

' तो फिर दादी जी की कहीं आंख तो नहीं धुंधला गई, हा हा हा।'

'अरे बेशर्म तू नीचे उतर तुझे तो छोडूंगी नहीं आज।'

'अरे क्या हुआ दादी जी?'

उसकी बहु आवाज़ लगाते हुए बाहर आई

'क्या हुआ आज फिर बच्चों से उलझ गई।'

'अरे ये मेरे पेड़ को धीरे-धीरे बर्बाद कर रहे हैं।'

' तो कोई नहीं खेलने दो इतने पत्ते तो फिर आ जायेंगे।'

' ऐसे कैसे पत्तें आ जाएंगे? तुम सब नीचे उतरो, नीचे उतरो।'

' दादी कोई बात नहीं शांत हो जाओ, अपना बीपी मत बढ़ाओ और अन्दर जाओ, मैं इन्हें भगा देती हूं ।'

दादी बड़बड़ाते हुए अंदर जाती है और अपना गुस्सा दिखाते हुए दीवार पर बड़ी तेज लाठी दे मारती है। तीन-चार दिन बीत जाते हैं दादी बरामदे मैं बैठे-बैठे र पहरेदारी करती रहती है लेकिन एक दिन जब गेट खुला रह जाता है तब बच्चे धीरे से अंदर आ जाते हैं। दादी की मर्यादा का ख्याल रखते हुए बच्चों ने प्लान बनाया कि हम अब से पत्ते नहीं तोडेंगे लेकिन फिर भी जब दादी को बच्चों की भनक लगती है तो वह भनभनाती हुई, बड़ी तेजी से बाहर आती है

' नालायकों ये पेड़ के पत्ते कम थे जो अब ये कागज़ काट काट के फैला रहे हो ।'

'अरे दादी फिर से गलती कर दी, यह पैसे हैं पैसे।'

उसी वक्त ऊपर की टहनी पर बैठे एक लड़के ने दादी से कहा

'अरे दादी, ओ दादी, वो देखा ना, आपके पैर के पास मेरे हजार रुपए का नोट गिरा है, जरा देना तो।'
उस शरारती लड़के ने इतना ही कहा था कि टहनी टूट जाती है। दादी यह देखकर आग बबूला हो जाती है और सब को मारने लगती है। उसकी बहू पीछे से संभालती है। बच्चे ढेरों कागजों के टुकडे वहीं छोड़ भाग जाते हैं और कार्तिक सारे कागज के टूकड़ों को समेटकर बोलता है

' अरे वाह इतने सारे पैसे , हम तो अमीर हो गये दादी।'

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

वाह, बहुत अच्छी रचना

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया मेम

दादी की परी
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