कविताअतुकांत कविता
ऐ! मेरे साए
तू किसको साया देता है?
कभी तन को छोड़
कभी मुझसे लिपट
खोए मुझमे इस तरह
सन्ध्या की ललित
एहसास भी है अब कुछ छुअन का
किरणें झलकाती मेरी आकृति
आकृति की विवश मायूसी
छोड़े जब जग का मोह
प्राण का शरीर से नाता सब
खत्म होता है अग्नि में जलकर
अस्थियाँ बनाती राख की कृति
क्या तू इसमें नव प्राण भरता है?
ऐ! मेरे साए
तू किसको साया देता है?
-शिवम राव मणि