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अंतर - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

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अंतर

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  • 27 Min Read

स्कूल से फोन आते ही रोहित दनदना के नकुल के स्कूल पहुंचा। नकुल को बाहर बैठा देखकर उसे कुछ समझ नही आया और वह सीधे प्रिंसिपल के ऑफिस में चला गया।
‘ नमस्ते मेडम जी’
‘ आइये बैठिये, मुझे आपसे नकुल के बारे में बात करनी है।’
‘ जी वेसे तो ये कोई शैतानी नही करता पर क्या बात है?’
‘ हाँ माना लेकिन नकुल को हमे स्कूल से निकालना पड़ेगा।’
‘जी पर क्यों?’
‘ क्योंकि ये नॉर्मल बच्चे की तरह व्यवहार नही करता। जिसकी जानकारी आपको पहले भी दी जा चुकी है।क्लास में कभी टीचर की नही सुनता, हमेशा डरा डरा रहता है। टीचर अगर कुछ कहे तो उनकी ओर देखता भी नही। बस पेंसिल, कागज़, पत्थर जो भी मिल जाए उसी में खोया रहता है। यहां तक की उसे कई बार अकेले में किसी से बात करते हुए भी देखा गया है। पर पूछने पे कुछ नही बोलता।’
‘ इन सब बातों को नज़रअंदाज़ भी तो किया जा सकता है।’
‘ ठीक है नज़रअंदाज़ तो कर सकते है लेकिन नकुल की पढाई में परफॉर्मन्स भी तो अच्छी नही है, और बाकी बच्चे भी इसकी किसी अनजान से बात करने की आदत से परेशान हो रहे है, जिससे कई बच्चों के पेरेंट्स की शिकायत भी आ चुकी है।’
‘ नही मेम स्कूल से मत निकालिये। दरअसल.. दरअसल मेने एक बात आप से शुरू से छुपाई।'
' कौन सी बात।'
'नकुल को बचपन से एक बीमारी है जिसे ऑटिज़्म कहते है। इसमे बच्चा किसी से नज़रें नही मिला पाता, यहां तक की अपने मां-पापा से भी नही और अपनी ही दुनिया में खोया रहता है।’
‘तो आपको ये बात एड्मिसन के वक्त ही बतानी चाहिए थी, उसे किसी स्पेशल स्कूल के लिए रेफर कर दिया जाता। खैर छोड़िये, अब आप नकुल को यहां से ले जाएं।’
‘ पर मेम उसे यहां पर भी तो स्पेशल तरीक़े से ट्रीट भी किया जा सकता है।’
‘ इससे तो अच्छा होगा कि उसे किसी स्पेशल स्कूल में ही डाला जाए’
‘ पहले भी एक स्पेशल स्कूल में डाला था लेकिन उसके बाद से नकुल के साथ अजीब होने लगा इसलिए वहां से निकलवा दिया गया।’
‘ क्या हुआ था?’
‘कुछ नही बस ऐसे ही तबियत को लेकर। ठीक है में इसे यहां से ले जाता हूँ। आपका शुक्रिया।’

रोहित नकुल के पास जाता है और अपनी तरफ देखने को कहता है। नकुल सिर ऊपर करता है पर नज़रें नही मिला पाता। कुछ दिनों बाद नकुल के स्पेशल स्कूल में जाने की तैयारियां होने लगती हैं। सभी रिश्तेदार सलाह देते हैं कि वह नकुल को अब ऐसे ही स्वीकार करें। शायद बड़े होते होते ये बीमारी भी छुप जाए। नकूल की मम्मी उसकी तरफ दया की नज़रों से देखने लगती है।

स्पेशल स्कूल जाते हुए 6 महीने से ऊपर हो चुके होते है। सब सही चल रहा होता है पर नकुल अब ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगता हैऔर उसकी अकेले में बात करने की आदत भी बढ़ने लगती है।
यह देखकर रोहित dr के पास जाता है और नकुल के बारे में बताता है। डॉक्टर का कहना होता है कि शायद उसने अपनी ही अलग दुनिया बना ली है जिसमे से बाहर निकालने के लिये उसे व्यवहारिक तौर पर बदलना होगा। रोहित नकुल पर और ज्यादा ध्यान देने लगता है। वह उसे बाहर घुमाने के लिए ले जाता है और दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए कहता है। पर जब कोई उससे बात करने की कोशिश करता वह और घबरा जाता।
काफी वक्त बीत गया नकुल की तबियत में कोई सुधार नही था। रोहित की परेशानी बढ़ती जा रही थी। एक दिन जब वह नकुल के पास बैठा था और उससे कुछ पूछने की कोशिश कर रहा था तो नकुल ने फिर से कोई जवाब नही दिया। रोहित ने बिना कुछ सोचे समझे नकुल को एक तमाचा जड़ दिया। पहले तो नकुल सीधा खड़ा रहा पर अचानक से वह चिल्लाते हुए रोहित को नाखून से मारने लगा। यह देखकर नकुल की मम्मी ने उसे छुटाया और नकुल को दूर कर दिया। नकुल के मम्मी पापा बिलकुल हैरान थे। उन्होंने कभी नकुल का ऐसा रूप नही देखा था। जैसे किसी ने उसे अपने वश में कर लिया हो। नकुल एक कोने में जाकर सिसक सिसक कर रोने लगा। उसकी मम्मी उसके पास धीरे से गयी और नकुल को पुकारा। नकुल सामने मुड़ा और अपनी पूरी नज़रें उठाकर अपनी मां की तरफ देखा। पर फिर से वह चिल्लाते हुए जोर जोर से रोने लगा। उसे जल्दी से उसी हॉस्पिटल ले जाय गया जहां से नकुल का इलाज चल रहा था। डॉक्टर ने उसकी हालत देख चाइल्ड केअर संस्था के लिए भेज दिया।

बहुत देर हो गयी लेकिन नकूल की हालत सुधरने का नाम नही ले रही थी। यह देखते हुए डॉक्टर ने नकुल के मम्मी पाप को बुलाया।
‘ देखिये ये केवल एक ऑटिज़्म बीमारी नही है। ऑटिज़्म कभी इतना घातक रूप नही ले सकती। उसकी बातें सुनकर और उसका बार बार यही दोहराना की वह बीमार नही है, इससे तो यही साफ होता है किवह मानसिक रूप से काफी परेशान है ना की बीमार है।’
‘ तो फिर क्या करें डॉक्टर। हमने तो उसके लिए सब किया , उसको प्यार भी ज्यादा किया।’
‘ देखिये जब हमे किसी बात से आहत पहुंचता है तो हम उसके बारे में सोचना शुरु कर देते है, अब चाहें हम बूढ़े हो या एक छोटे से बच्चे इससे कोई फर्क नही पड़ता। और जब हम किसी तकलीफ से गुज़रते हैं तो उसके प्रति सवेंदनशील भी हो जाते हैं। ऐसा नही कि नकुल का मजाक ना बना हो, और जब जब उसका मजाक बना होगा तो उसके मन में घृणा और बढ़ती गयी होगी। जिसका गुस्सा तब तो वह नही निकाल पाया पर अब पूरी तरह से निकल रहा है।
और दूसरी बात आपने उसे प्यार तो किया लेकिन प्रेम से अधिक दया लगा होगा। दया और प्रेम में बहुत अंतर होता है। जब कोई नकुल से मिलता होगा तो वह पहले तो उसे अजीब नज़रों से घूरता होगा और उस पर तरस खाने लगता होगा। भले ही आप उसके पास हर वक्त रहते हों या कोई भी जो उससे मिलता हो, उस पर दया दिखाने लगते हैं। जबकि इसमे कोई प्यार नही होता। नकुल एक बच्चा जरूर है लेकि वह इन सब बातों को अच्छे से पहचान पा रहा है।’
‘ तो फिर हम क्या कर सकते हैं'
‘खैर अभी तो उसकी हालत में सुधार के आसार कम ही दिखते हैं पर जब सही हो जाता है तो उससे जुड़ी परेशानी उसके सामने जाहिर ना करें। उसके साथ एक दोस्त बनकर रहें और याद रहे कि वह कोइ बीमार नही है बस वह परेशान है। और उसे असली प्यार दें।’

नकुल के मम्मी पाप नकुल को देखने के लिए उसके पास जाते हैं। उसकी अभी भी वही हालत रहती है। वह बेड पर एक तरफ कभी बैठता और कभी सो जाता। अगर कोई पास आता तो वह सिर्फ एक ही ज़ुबान बार बार बोलता,’ मैं बीमार नही हूँ, तुम सब गन्दे हो।’

शिवम राव मणि

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत महत्वपूर्ण विषय आपने उठाया है.

शिवम राव मणि2 years ago

धन्यवाद आपका

Meeta Joshi

Meeta Joshi 3 years ago

ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चे को स्पेशल अटेंशन की जरूरत होती है ।यही उसका इलाज है।बहुत खूब। शिवम जी कल आपने मेरी स्टोरी 'नकारा' में प्रतिक्रिया दी थी गलती से वो डिलीट जो गई निवेदन गई पुनः अपने विचार प्रेषित करें।

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया आपका

Ruchika Rana

Ruchika Rana 3 years ago

सुंदर कहानी

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत बढ़िया बहुत खूब 👌🏻

शिवम राव मणि3 years ago

आपका शुक्रिया

दादी की परी
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