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मुझे वो नज़रें बदलनी हैं - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मुझे वो नज़रें बदलनी हैं

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  • 4 Min Read

मुझे वो नज़रें बदलनी हैं,
जो मेरी तरफ अचानक से मुड़ी हैं।

अपने आप को भींचती हुई
जो मुझे अचम्भे से देख रही हैं;
दया का भाव लिए
जो मुझे कमजोर बतलाती हैं,
मुझ तक पहुंचने के लिए
जो तरस की सीढ़ियां चढ़ती हैं,
जो मुझे तीर की तरह गढ़ती हैं,
आंख में डले तिनके की तरह चुभती हैं,

लोगों के चहल-पहल में भी
जो मुझे ढूंढ लेती हैं,
हास्य का रूप में समझें
जो मुझे निहारा करती हैं,
बीतें पुराने जख्मों पर
जो नई तलवारें चलातीं हैं
घाव का निशान बनाते हुए
जो तकदीर को तार-तार कर देतीं हैं,

नापसंद है मुझे ऐसी नज़रें
जो सहाय का अर्थ हमदर्दी से बतलाती हैं,
बस मुझे तो वो नज़रें बदलनी हैं
जो मेरी तरफ अचानक से मुड़ी हैं।

— शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

वाह वाह

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

वाह वाह

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

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