कहानीसामाजिकलघुकथा
3 बेटियों के बावजूद ज़रीन को इस बार एक बेटे की उम्मीद थी। सुबह जल्दी उठकर ज़रीन ने इक्के दुक्के काम को निपटाया और हॉस्पिटल के लिए तैयार होने लगी। सास की ओर से घर के कामों में मदद मिलना गुड़ पे चीटीं से कम नही था, क्योंकि सास को लड़कियों से कोई मोह नही पर एक बेटे की बात पर जान लूटाने को कहती थी। शुरू से अब तक बेटे का राग रटते हुए इतना वक्त गुज़र गया था कि अब सास और बहु के सुरों में काफी परिवर्तन आ चुका था। लेकिन ज़रीन भी सास की बातों को पूरी तरह से नकारती नही थी, क्योंकि उसे भी एक बेटे की इक्षा थी। जरूर ज़रीन और इम्तियाज़ पढ़े लिखे थे लेकिन अपने जीवन की दूरदर्शिता का ख्याल करते हुए उन्होंने किताब की तहज़ीब को झुठलाना शुरू कर दिया।
उनकी सोच थी कि बेटियों की शादी के बाद बुढापे में कमजोर हड्डियों को सम्भालने के लिए एक बेटे का होना तो जरूरी है; और कुछ नही तो घर की सम्पत्ति का क्या? कुल का क्या? सारी बातों का ख्याल करके ही ज़रीन और इम्तियाज़ ने अल्ट्रासाउंड कराने की ठानी। अपराध का हवाला देते हुए महंगी फीस वसूल कर डॉक्टर ने हाँ कर दी। लेकिन इस बार भी असांवित दम्पत्ति को निराशा ही हाथ मिली। फिर से लड़की के होने की पुष्टि होते ही उसके अस्तित्व को मिटा दिया गया।
दोनों के जाने के बाद नर्स ने डॉक्टर से सवाल किया
‘ डॉक्टर इस बार तो लड़का था लेकिन आपने रिपोर्ट में लड़की के होने की बात क्यों कही?’
‘ अच्छा! बता देता तो मुझे क्या मिलता। हमे ऐसे ही पढ़े लिखे गंवार लोग ही तो चाहिए।’
शिवम राव मणि