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यथार्थ रूप भाग-२ - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

यथार्थ रूप भाग-२

  • 378
  • 3 Min Read

निश्छलता को जन्म देती हुई
जब एक आस
मन में ठहरती है
तो चिंताओं के उष्ण में जलते हुए
वह धूं-धूं करती
दुविधाओं में तपकर
तामस की तरह अभेद हो जाती है।
तब एक अद्वितीय व ईश्वरीय तरंग
कृष्ण रूपी चित्त को छुकर
अपने स्पर्श से अंतर्मन को
उस बुनियाद पर ला देती है,
जहां से ना तो कोई नीच की व्यथा है
और ना ही कोई ऊंच का अभिमान
बल्की ,वहां से तो सिर्फ गंतव्य
या तो समृद्धि का होता है
या समाप्ति का।

शिवम राव मणि

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Rashmi Sharma

Rashmi Sharma 3 years ago

बहुत खूब

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 3 years ago

आपकी हर रचना उम्दा होती हैं

शिवम राव मणि3 years ago

आपका शुक्रिया

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आपकी सभी रचना हृदय को छू लेती हैं। बहुत सुंदर लिखते हैं आप 👌🏻

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया मेम

Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

बहुत सुन्दर

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Bhaavpurna Panktiyaan..!

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद सर

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

'तमस की तरह अभेद्य','उस जगह पहुंचना जहां किसी तरह का भेदभाव न रह जाए' बहुत सुंदर पंक्तियां!

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया आपका

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद सर

Bhawna Sagar Batra

Bhawna Sagar Batra 3 years ago

बहुत सुंदर ।

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया आपका

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

अच्छा लगा

शिवम राव मणि3 years ago

आभार आपका

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

शिवम राव मणि3 years ago

जी, आभार आपका

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