Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
खुद पर हो यकीं तो दश्त ए मुश्क़िलात में भी रास्ते निकला करते हैं हज़ार बिजलियां गिरें बेशुमार आंधियां उठें चराग़ फिर भी जला करते हैं @"बशर"