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कवितानज़्म
मुक़म्मल किसीके इश्क़ का ख्वाब नहीं, इस खेल में शख़्स कोई क़ामयाब नहीं! आगके दरियाको पार कर सका है कोई, इस आगमें जलने वालोंका हिसाब नहीं! © 'बशर' بشر.