लेखअन्य
बसंत ऋतु के नाम पत्र
प्रिय बसंत,
फेसबुक और व्हाट्सएप पर तुम्हारे आगमन का बहुत शोर है। आभासी दुनिया के कवि,लेखक और शहरी लोग इतना कुछ वर्णन कर रहे हैं।
मैंने गांव नहीं देखे, मगर सफर में आते -जाते सड़क के दोनों ओर फैले विशाल मैदान देखे हैं,कभी हरे,कभी पीले फूलों से लदे हुए देख कर आंखों को अनंत सुकून मिलता है।तुम्हें पहचानना तो बहुत आसान है!अपनी स्वर्णिम आभा जो बिखेर देते हो!शहर में हूं तो क्या हुआ कभी-कभी मुझे कोयल की कूक भी सुनाई दे जाती है।तितलियां मेरे भी बगीचे में आती हैं,वे गांव और शहर का भेद नहीं करतीं। भंवरे भी आते हैं।चंपा, चमेली, जूही और मोगरा लगा रखा है मैंने आसपास।
इन फूलों की महक से मेरी रातें भी महक जाती हैं।एक बारहमासी नींबू का पेड़ भी है, जिसके नींबू पीले होने लगे हैं। छोटे-छोटे अमरुद पत्तों के बीच से झांक रहे हैं।आंवला भी कुछ अलसाया सा दिख रहा हैऔर यह जो खजूर का पेड़ लगा लिया था उस पर भंवरे तो आ रहे हैं मगर खजूर आज तक नहीं लगे।
गांव की सखियां कहती हैं,तुम शहर वाले क्या जानो बसंत !तुम्हारे शहर में पीले कपड़े पहनने और सरस्वती पूजन को ही बसंत समझ लिया जाता है। तो मेरे प्यारे ऋतुराज, मैं तुम्हें बता रही हूं कि मैं भी तुम्हें उतना ही जानती हूं ,जितना मेरी गांव की सहेलियां।
छह ऋतुओ वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत में तुम्हीं तो एक हो जो सौंदर्य बिखेरते आते हो। तुम्हारा तो इतना महत्व है कि वर्ष का अंत और प्रारंभ तुमसे ही होता है।
अब तुम अपनी तारीफ सुनना चाहते हो तो सुनो,ठिठुरती सर्दी से राहत दिलाते हो, मौसम सुहावना बनाते हो , पेड़ों में नए पत्ते लाते हैं। मेरे प्रिय आम के जल्दी पहुंचने की सूचना देते पेड़ बौरों से लद जाते हैं। और हां, हम केवल सरस्वती पूजा ही नहीं जानते बल्कि राग रंग और उत्सव से ऋतुराज तुम्हारा स्वागत करना भी जानते हैं।वसंत पंचमी, शिवरात्रि तथा होली रंगों का त्योहार भी तुम्हीं अपने संग लाते हो।
अब बताओ प्रिय बसंत ,मैं तुम्हारे बारे में कितना कुछ जानती हूं ?कोई आवश्यक नहीं कि मैं विरह वेदना में प्रिय की राह तकते हुए कोई कविता रच डालूं कि कामदेव के बाण ने मुझे बिंधा है! मैं तो तुम्हारा स्वागत करने के लिए कब से आतुर बैठी हूं।
शेष बातें मिलने पर
गीता
गीता परिहार
अयोध्या