कविताबाल कवितागीत
कागज पर उकेरती नित
वो मन में उभरते विंब
दुनिया के छल, विद्वेष
का उसे अभी नहीं इल्म
जोशो-खरोश से रच देती
है वो मनवांछित किरदार
रचनाओं से उसके मन को
मिलती है खुशियां बेशुमार
बड़ों को हर सृजन दिखाके
वो चाहती उनका स्नेहाशीष
तारीफों से पुलकित हो मन
उसका ऊर्जा से दमके शीश
हे प्रभु इस मासूम को देना
रचनाधर्मिता का ही उपहार
ताकि वो सृजनात्मकता से
जगमग कर दे ये सारा संसार
ईर्ष्या और द्वेष के माहौल से
रखना इस मासूम को सदा दूर
ताकि कभी उसके दिल दिमाग
में न पनपे भेदभाव का नासूर