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कवितानज़्म
बहारों पर मौसमका पहरा हुआ देखा है घरआंगन को तपता सहरा हुआ देखा है सूरज की तपिश को गहरा हुआ देखा है धूप में ज़िन्दगी को ठहरा हुआ देखा है @"बशर"