कवितानज़्म
तेरे इन ख़्वाबों की अब कोई ताबीर न होगी
खस्ताहालत म्यानों में कोई शमशीर न होगी
बिना मश्क़्क़त किए हाथ मलते रह जाओगे
हाथों की इन लकीरों में तेरी तक़दीर न होगी
भाई को भाई के ख़िलाफ़ खड़ा करने वालों
अब इस आंगन में बंटवारे की लकीर न होगी
खूं इन रगों में एकही मां के लहू का बहता है
उसके दिल लगे चोट मेरे दिल में पीर न होगी
@बशर