Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
गुमाँ ओ ग़ुरूर मत कर 'बशर' शब आख़िर इक ऐसी आयेगी, उस काली घोर अंधेरी रात की सहर कभी भी नहीं हो पायेगी! © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر