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कवितानज़्म
लफ़्ज़ों को पढने की ही तालीम मिली हम को मदरसे और मकतबे में बे-'इल्म और जाहिल ही रहे हम मग़र जज़्बातों के फ़लसफ़े पढ़ने में © डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر