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कवितानज़्म
धर्म और मज़हब को मानलेने से शख़्स कोई महान नहीं हो जाता चोटी रखने वाला हिंदु दाडी रखने वाला मुसलमान नहीं हो जाता तहज़ीबो-तमद्दुन का सिलसिलेवार मुसलसल सफ़र अपने रहगुज़र सदियों तक चलता है रातोंरात कोई मुल्क़ हिंदुस्तान नहीं हो जाता @"बशर"