Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
भरे-पूरे घरमें मौला यतीम बनकर जीना हमें मंज़ूर नहीं मौत मंज़ूर है पीरी में दीनबन कर जीना हमें मंज़ूर नहीं 'उम्रदराज़ होकर क्या लेना खुशी के चार दिन काफ़ी हैं रंज - ओ- ग़म का नदीम बन कर जीना हमें मंज़ूर नहीं © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر