कवितालयबद्ध कविता
काली अंधेरी रात में
जब धरती गुस्से में थर्राती है
लोगों की सांसे और जिन्दगी उस पल
बस वहीं ठहर जाती है
बाँध तोड़ जब नदियाँ
जिंदगी लीलने दौड़ी चली आती है
आग, बाढ़, भूकंप, त्रासदी
जब जब अपना कहर बरसाती है
उसी पल भगवान के साथ साथ
जो नाम पुकारे जाते है
सब कुछ छोड़ छाड़ वह उसी क्षण
मदद को दौड़े चले आते है
लाशों के ढेर के बीच घूम कर
वो भी तो विचलित होते होंगे
जहां से हटने की सलाह होती है सब को
वहाँ भेज इनके परिवार चिंतित होते होंगे
पर एक पल को खुद की सोचे बिना
वो देव दूत से आते है
अनदेखे दुश्मन से लड़ाई उनकी
वो फिर भी कहां घबराते है
आपदा प्रबंधन के सैनिक है वो
दुश्मन की चाल का कोई पता नहीं
जान जा सकती है निश्चित उनकी भी
पता है फिर भी फर्ज से कोई हटा नहीं
खून जमा दे ऐसी ठंड हो चाहे
आफत की बरसात हो
अम्बर धरा सब फटने को व्याकुल
साँझ ढले, दिन या रात हो
गुमनामी का डर नहीं इनको
बस अपना फर्ज निभाते है
कोई अमर ज्योति नहीं इनके नाम की
वह शान से फिर भी शहीद हो जाते हैं
©सुषमा तिवारी