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तुझे पहचानू मैं 🥹
के तुझे अपना सोचूं के तुझे अपना मानू मैं ।
तुम साथ होते हुए भी साथ नहीं, कैसे तुझे जानू मैं ।
तेरा एक रूप तो नहीं हैं, ना जाने कितने रूप छुपा रखे हैं मुझसे ?
कभी अपना लगे मुझे कभी पराया लगे मुझे, अब तू ही बता, कैसे तुझे पहचानू मैं ।
फिरोज़ खान मदनी