कहानीसंस्मरण
मां की स्मृतियाँ
माँ के नाम मात्र से असंख्य स्मृतियाँ साकार हो जाती हैं. अपने से बड़ों का हमेशा आदर करना सिखाने वाली, कहानियाँ सुनाने वाली, भूत से डर भगाने वाली, जबरदस्ती, मिन्नत करके सिर में तेल डालने वाली, जैसे हम उन पर कोई अहसान कर रहे हों..!!
मेरी पढ़ने की आदत बचपन से माँ ने ही डाली. वे पूरी पूरी किताबें पढ़ कर सुनाती थीं..बहुत सी कहानियां भी सुनाती थीं. पढ़ाती भी थीं. अंक गणित, पढ़ातीं, पहाड़े याद करा कर सुनती,
अपने समय में वे '' विदुषी आनर्स '' की '' गोल्डमेडलिस्ट थीं.
मैक्सिम गोर्की का '' मेरा बचपन '' उन्होंने ही, पहली बार पढ़वाया, बाद में मैं खुद बीच-बीच में पढ़ लेता था.. उसके, मुख्य पात्र अलेक्सी, मिखाइल मामा और याक़ूब मामा, उसके नाना नानी . स्लेज, साइबेरिया, परियों की कहानियां , का जिक्र याद आता है. अभी भी याद है, घर में बहुत सी किताबें रहती थीं.
बहुत सी पुस्तकें मैंने तब पढ़ीं जब उनका मतलब भी पता नहीं था.. कुछ रूसी साहित्य.. टाल्सटाय और चेखव,'' अन्ना कैरीनिना..'' को मैं क्या ठीक से समझ पाता.हिन्द पाकेट बुक्स की बहुत सी किताबें..! जो हाथ लग जाये पढ़ लेता था.
मैं खाने में, घी बिल्कुल नहीं खाता था, रोटी हो या दाल वे चुपचाप, गर्म चावल के बीच घी डाल देती थीं,मैं गुस्सा भी हो जाता था. खाने में '' ना '' जैसे जबान पर होता था..!
वे खाने के अतिरिक्त सुबह, शाम स्वादिष्ट नाश्ता जरूर बनाती थीं. हम सब लोग इस सबके आदी हो गये थे. होली, में गुझिया, समोसे और भी बहुत सी चीज़ें वे बनाती थीं. मैं भी साथ में कुछ करता था.
अपने ग्रह नगर में, जहां अक्सर गर्मी की छुट्टियों में हम जाते ही थे और बचपन में रहे भी थे, सभी उनकी प्रशंसा करते थे. सुबह उठ कर हम लोग नित्य बाबा, दादी का चरणस्पर्श करते थे. सब उनकी ही सीख के कारण.. वे घर की बड़ी बहू थीं. खूब बड़ा घर, परिवार वे रात तक व्यस्त रहतीं.. दादी का नित्य 12 बजे तक की पूजा, हवन फिर प्रसाद की व्यवस्था करना. गांव से भी लोगों का आना जाना लगा रहता.
जीवन के मानदंड भी अनायास, ही अवचेतन रूप से हम उनकी जीवन-शैली से ही निर्धारित करने लगे थे...!!
जो कि सर्वथा अव्यवहारिक था..! यह हम लोगों ने बाद में, जीवन के कटु अनुभवों से जाना..!
वे बहुत दुबलीपतली थीं. बीमार भी अक्सर हो जाती थीं.
धीरे-धीरे वे बीमार रहने लगीं. हम लोगों ने कभी कोई घर का काम नहीं किया था. धीरे धीरे सब, जैसे तैसे, करने लगे.. जीवन के रस जैसे समाप्त से होने लगे, हम यन्त्रवत जीने लगे.
वे कमजोर होती गयीं, उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया. दिन पर दिन तबियत बिगड़ने लगी.. वर्षों तक वे उठ नहीं पायीं.. व्हील चेयर, पर बैठ कर वे अपनी '' रामायण '' जरूर पढ़तीं.. अपने तीन भाई, बहनों में मैं सबसे छोटा था, घर में स्थायी रूप से माता-पिता के साथ मैं ही रहता. उनके कामों के लिए मेड रख ली गयी थी. पापा कालेज पढ़ाने और मैं कालेज चला जाता था. हम लोगों आपस में कम ही बोलते थे.. सन्नाटा सा रहता..
हम लोग त्योहार की रौनकें भूल ही गये , सारे दिन, महीने, साल, एक से रहते.त्योहार आते और गुजर जाते, त्योहारों का मतलब सिर्फ आफिस की छुट्टी, कुछ फुर्सत का समय ट्रांजिस्टर और किताबें..! त्योहारों में भी सामान्य खाना बनता.
मेरी नौकरी स्नातक परीक्षा के तुरंत बाद , जल्दी ही 19 साल में ही लग गयी, बाद में एम ए के लिए मोर्निंग क्लासेज ले लिये, फिर आफिस..
तब तक मैंने शहर से बाहर, स्थानांतरण के डर से प्रमोशन टेस्ट देने बन्द कर दिए.... प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का विचार तो कब का छूट गया..! पोस्टल आर्डर खरीदते और वे पड़े रहते..
वे कई, कई महीने बीमार रहतीं.
धीरे-धीरे कमजोर होती गयीं, इस बीच बड़े भाई भी स्थानांतरित हो कर यहीं आ गये. हमारा पूरा परिवार साथ में रहने लगे.
उनकी दशा में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ.
कुछ वर्षों बाद, पूरे परिवार की उपस्थिति में, उनका देहावसान हो गया..!
, घाट पर काफी लोग थे, मैं अकेले एक स्थान पर खड़ा हुआ था, एक फूफा जी आये, बोले कितने साल के हो, मैंने कहा 30, बोले 30 साल तक साथ रहा..!!
तीन मास के अन्दर ही पिता, जो कि स्वस्थ थे, अचानक चले गए..
माता-पिता के ऋणों से हम कभी भी उऋण नहीं हो सकते.
उनके आशीष जीवन पर्यन्त हमारे साथ रहते हैं.
कमलेश वाजपेयी
नोएडा
ये तो सच है सर मां के साथ बीते पल बेहद खूबसूरत और सुखदायक थे..उनके बाद उनके साथ के लिए ह्रदय रो उठता है..!🙏🏻
जी. पूनम..!
माता-पिता की मधुर स्मृतियां सदा साथ रहती हैं।सच, कभी कभी अपनी नासमझी पर रुला भी देतीं है।
अम्रता जी..! धन्यवाद 🙏
बहुत ही जीवन्त संस्मरण.....👌👌👌
जी. धन्यवाद
संस्मरण बहुत सुंदरता से लिखते हैं आप🙏💐
जी..! धन्यवाद!