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कवितानज़्म
घिस घिस कर लगाते हो माथे और गर्दन पर चंदन मिट्टी में मिल जाने हैं ये मिट्टी के बने हुए तन बदन, सुकूंन से नसीब हो जाए दो गज ज़मीन ये गनीमत किसीके काम आएंगे तुने जो बनाए मकां ये सदन! @"बशर"