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जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए

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टूटना पड़ता है हर शख़्स को फिरसे उठने केलिए
सूरज को भी डूबना पडता है फिरसे उगने केलिए

दिनभर की थकन केबाद रातभर शाख पर सोकर
परिंदेको जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

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