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कवितानज़्म
उतारा हुआ बोझ फिर उतार रहा हूँ गुजारा हुआ दिन फिर गुजार रहा हूँ वही खटिया वही तकिया वही बिस्तर संवारी हुई सिलवटें फिर संवार रहा हूँ @ "बशर"