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कवितानज़्म
दावत बे-शक नये साल के आने की हो चाहे इस साल के जाने की वज़ह चाहे जोहो हमें तो इंतज़ार है इकत्तीस दिसम्बर के आने की © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر