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अनोखा दशहरा
"मां, आज दशहरा है, दशहरा.. आज मेला नहीं लगेगा, रावण वध नहीं होगा ?"
"बेटा,यह साल तो ऐसे ही चला जाएगा, होली से अब तक बस ऐसे ही चल रहा है।अब तो न रामलीला होगी ,न दिवाली का धूम धड़ाका!"
"रामलीला भी नहीं, दीवाली पर पटाखे और रौशनी ?
मां, मिठाई भी नहीं आएगी, उसके बगैर आनन्द कैसे आएगा..?"
"जानती हूं बेटा,बच्चों के लिए इसका कितना महत्व होता है ! हम भी जब तुम्हारी उम्र के थे , पिताजी की साईकिल पर बैठ कर रावण वध देखने जाते थे। पिताजी वहां पहुंच कर साईकिल पर खड़ा कर देते और हम आतिशबाजी का मजा लेते ।
पिताजी मेले के हर स्टॉल पर हमें ले जाते। मुझे तो चक्री पसंद थी और खाने में चाट और जायंट व्हील पर बैठकर चिल्लाना,बस लौटते हुए चक्री को साईकिल के आगे लगा देती।वह तेज- तेज घूमती,उसी में दुनिया भर का आनंद आ जाता।"
"कहां खो गई, मां? मां, मेला न लगने से स्टाल वालों का भी तो दशहरा नहीं मनेगा !😢
हां,बेटा बहुत से लोगों के त्योहार फीके पड़ गए। मैं , तुम्हारे पिता,दादी, दादाजी सभी हर साल नौ दिन पंडाल से पंडाल देवी दर्शन करते थे।अब कहां पंडाल !जो एक- दो हैं वहां भी सोशल डिसटेनसिंग!
मैं कालीबाड़ी का 'सिंदूर खेला' मिस कर रही हूं।
"पापा भी स्टेज परफॉर्मेंस नहीं कर पाए।"
"चलो, मायूसी छोड़ो,जाओ देखो चाचू और बुआ ने तुम्हारे लिए सरप्राइज तैयार किया है।"
"वाह,वाह मम्मा बाहर आओ रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण सबके पुतले सब हमारे ही लॉन में चाचू और बुआ ने खड़े कर दिए हैं।मजा आ गया।दादू तीर चलाईए और पापा आतिशबाजी शुरू हो।"
"हां, मगर तुम थोड़ा दूरी बना कर रखो इं पटाखों से।"
"पटाखों से न ?में तो डर गया,दूरी के नाम से, सोशल डिसटेनसिंग यहां भी !"
हा,हा,हा.....