Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ज्यों-ज्यों बड़ी होती है बेटी - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

ज्यों-ज्यों बड़ी होती है बेटी

  • 85
  • 5 Min Read

बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी

माँ का दिल धड़कता है बहुत

माँ का दिल यूं ही नहीं धड़कता है

आज समाज में विराजमान

पापियों के कुकर्मों से अनजान नहीं है, माँ

माँ अवगत है इस बात से

कि पापी जघन्य पाप करने से

नहीं चूकते हैं

मौका देखते ही पापी

भेड़िया की भाँति टूट पड़ते हैं

अबला नारी के ऊपर।।


बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी

पिता चिंतित रहने लगते हैं हर घड़ी

जरा-सी देर से जब लौटती है बेटी

विद्यालय या बाजार से आने वक्त

उस वक्त पिता का दिल भी धड़कता है

तन स्थिर हो भले एक ही जगह पर

एक पापा का मन वहीं रहता है विराजमान

जहाँ पर रहती है बेटी

पापा भी पापियों के करतूतों से अनजान नहीं हैं

पर एक आदर्श पिता को रखना चाहिए है

ख़ुद पर और बेटी पर विश्वास

बेटी को हर मुश्किल से डटकर

सामना करना सिखलाना चाहिए

पापियों को उनकी असल औकात

दिखलाने हेतु बेटियों को मजबूत बनाना चाहिए।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित

1605957172.jpg
user-image
Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

अच्छी रचना

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद मैम

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg