कविताअतुकांत कविता
बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी
माँ का दिल धड़कता है बहुत
माँ का दिल यूं ही नहीं धड़कता है
आज समाज में विराजमान
पापियों के कुकर्मों से अनजान नहीं है, माँ
माँ अवगत है इस बात से
कि पापी जघन्य पाप करने से
नहीं चूकते हैं
मौका देखते ही पापी
भेड़िया की भाँति टूट पड़ते हैं
अबला नारी के ऊपर।।
बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी
पिता चिंतित रहने लगते हैं हर घड़ी
जरा-सी देर से जब लौटती है बेटी
विद्यालय या बाजार से आने वक्त
उस वक्त पिता का दिल भी धड़कता है
तन स्थिर हो भले एक ही जगह पर
एक पापा का मन वहीं रहता है विराजमान
जहाँ पर रहती है बेटी
पापा भी पापियों के करतूतों से अनजान नहीं हैं
पर एक आदर्श पिता को रखना चाहिए है
ख़ुद पर और बेटी पर विश्वास
बेटी को हर मुश्किल से डटकर
सामना करना सिखलाना चाहिए
पापियों को उनकी असल औकात
दिखलाने हेतु बेटियों को मजबूत बनाना चाहिए।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित