कविताअतुकांत कविता
शहीद सैनिक का शव जब पहुंचता है
गाँव में, तब गाँव भी रोने लगता है
माँ धरती भी खूब आँसू बहाती है
आसमां की पलकें भी भींग जाती है
हवाएं भी मन ही मन खूब रोती हैं।।
शहीद सैनिक का शव जब पहुंचता है
मीलों की दूरी सफ़र तय करके, गाँव में
तब पत्थर दिल शख़्स भी शहीद सैनिक को
देख, नयनों से अश्रु की धार बहाता है
सैनिक से लिपट बहुत रोता है।।
शहीद सैनिक का शव जब पहुंचता है
सैनिक के दरवाज़े पर, तब
सैनिक की माँ अपने शहीद बेटे के
मुख को निहारने लगती है एकटक
माँ, याद करने लगती है, उन लम्हों को
जब माँ ने बेटे को गोद में रखकर सुलाया था
माँ बेटे के शव को देख खूब रोती है
माँ की आँखों से निलकने वाले अश्रु की
करुण पुकार सुन देवतागण भी
यकीनन उस वक्त रोते होंगे।।
शहीद सैनिक का शव जब पहुंचता है
सैनिक के दरवाजे पर, तब
शहीद सैनिक की पत्नी पति के चेहरे को
देखने लगती है एकटक
चाहती है रो रोकर अश्रु की नदियाँ बहाना
पर, जानती है रोने से प्रिय नहीं आएंगे वापस
सैनिक की पत्नी के लिए जीवन गुजारना
होता है अत्यंत कठिन फिर भी
सैनिक की पत्नी टूटती नही है
संभालती है, ख़ुद को, अपने परिवार को
हर परिस्थिति में ख़ुद को परिवार को
संभालने का वायदा करती है
पति के चेहरे को स्पर्श कर।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित