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हिन्दी में बिंदी का महत्व - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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हिन्दी में बिंदी का महत्व

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#किस्सा/कहानी
-हिंदी में बिंदी का महत्व
मुझे बचपन से ही हिंदी से बड़ा लगाव रहा है। लिखने में अशुद्ध हिंदी का प्रयोग -हिंदी में बिंदी का महत्व
मुझे बचपन से ही हिंदी से बड़ा लगाव रहा है। लिखने में अशुद्ध हिंदी का प्रयोग मुझसे सहन नहीं होता है। मेरा मानना है कि जिस भी भाषा का प्रयोग हो उसकी शुद्धता का ध्यान रखा जाए।
मैंने अंग्रेजी साहित्य से परास्नातक किया और 18 वर्षों तक एक सीबीएसई स्कूल में कक्षा 11 और 12 को अंग्रेजी पढ़ाई। उसके पश्चात 18 वर्ष तक मैंने प्रधानाध्यापिका का पद संभाला। यहां मुझे अवसर मिला कि मैं हिंदी को उसका उचित स्थान दिलवा सकूं। मेरे पास जब अध्यापकों की डायरी आती। उनके गलत हिंदी प्रयोग को सुधारती, उन्हें बुलाकर समझाती।
प्रदेश विशेष की उच्चारण गलतियां होती हैं किंतु लिखने में गलती नहीं होनी चाहिए ,विशेषकर बिंदु का प्रयोग। यदि अध्यापक इसके महत्व को नहीं समझते, तो यह मुझसे सहन ना होता।
एक अध्यापिका थीं जो बार-बार समझाने पर भी सुधार नहीं ला रही थीं।वे मुझसे इस कदर नाराज़ हो गईं कि उन्होंने क्लास में जाकर बच्चों से कहा कि इतनी बड़ी बिंदी लगाया करो, जितनी प्रधानाचार्या अपने माथे पर लगाती हैं , जिससे उन्हें दिखाई दे। यह बात जब मुझे पता चली ,मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने उन्हें बुलाया और समझाया कि हिंदी अध्यापिका होना और हिंदी की अच्छी पकड़ होना तो उनके लिए गौरव की बात होनी चाहिए।भाषा में यदि सुधार होगा तो वह उनके भविष्य के लिए ही अच्छा होगा। फिर जो बात मैं उन्हें अपने ऑफिस में समझाती हूं अगर वह सार्वजनिक रूप से उसका उपहास अपनी कक्षा में करती हैं, तो वे अपनी कमी को बच्चों के सामने स्वयं ही प्रकट करती हैं।
इस घटना के बाद भी धीरे-धीरे उन अध्यापिका में विशेष कुछ सुधार नहीं हुआ। उनका स्थानांतरण हो गया। किंतु आज भी वह मुझे हिंदी में सुधार हेतु मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देती रहती हैं।
गीता परिहार
अयोध्या

सहन नहीं होता है। मेरा मानना है कि जिस भी भाषा का प्रयोग हो उसकी शुद्धता का ध्यान रखा जाए।
मैंने अंग्रेजी साहित्य से परास्नातक किया और 18 वर्षों तक एक सीबीएसई स्कूल में कक्षा 11 और 12 को अंग्रेजी पढ़ाई। उसके पश्चात 18 वर्ष तक मैंने प्रधानाध्यापिका का पद संभाला। यहां मुझे अवसर मिला कि मैं हिंदी को उसका उचित स्थान दिलवा सकूं। मेरे पास जब अध्यापकों की डायरी आती। उनके गलत हिंदी प्रयोग को सुधारती, उन्हें बुलाकर समझाती।
प्रदेश विशेष की उच्चारण गलतियां होती हैं किंतु लिखने में गलती नहीं होनी चाहिए ,विशेषकर बिंदु का प्रयोग। यदि अध्यापक इसके महत्व को नहीं समझते, तो यह मुझसे सहन ना होता।
एक अध्यापिका थीं जो बार-बार समझाने पर भी सुधार नहीं ला रही थीं।वे मुझसे इस कदर नाराज़ हो गईं कि उन्होंने क्लास में जाकर बच्चों से कहा कि इतनी बड़ी बिंदी लगाया करो, जितनी प्रधानाचार्या अपने माथे पर लगाती हैं , जिससे उन्हें दिखाई दे। यह बात जब मुझे पता चली ,मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने उन्हें बुलाया और समझाया कि हिंदी अध्यापिका होना और हिंदी की अच्छी पकड़ होना तो उनके लिए गौरव की बात होनी चाहिए।भाषा में यदि सुधार होगा तो वह उनके भविष्य के लिए ही अच्छा होगा। फिर जो बात मैं उन्हें अपने ऑफिस में समझाती हूं अगर वह सार्वजनिक रूप से उसका उपहास अपनी कक्षा में करती हैं, तो वे अपनी कमी को बच्चों के सामने स्वयं ही प्रकट करती हैं।
इस घटना के बाद भी धीरे-धीरे उन अध्यापिका में विशेष कुछ सुधार नहीं हुआ। उनका स्थानांतरण हो गया। किंतु आज भी वह मुझे हिंदी में सुधार हेतु मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद देती रहती हैं।
गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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