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लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (2) - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

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लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (2)

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रात दिन मेहनत से लग्न से कार्य करती। इतना कार्य करने के पश्चात भी उतना मेहनताना नही मिल पाता था। परन्तु शीशों देवी बिल्कुल भी नही घबराती थी। पति के जाने के बाद खेतों मे जुताई बुवाई पानी देना फसल काटना आदि सभी कार्य वह अकेले करती चली गयी। परन्तु अपने बच्चों को उन्होंने कभी भूखे पेट नही सोने दिया। जितना बेहतर उनसे हो पड़ा वो करती चली गयी। उनके दो भाई थे उनमें से एक भाई था देशराज वह अपनी बहन की बड़ी इज़्ज़त करता था। बहन को दिन रात अकेले खेत में खटते देख रहा था। बहन ऐसी हालत देख भाई उनकी मदद करने के लिये आगे आये। उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर बहन के परिवार को अपना मानकर दिन रात खेती बाड़ी का काम देखा। उस वक़्त देशराज जी उन लोगो के लिये भगवान के भेजे गए किसी फरिश्ते से कम नही थे। दोनों की मेहनत ने मिलकर खेत की फसल को लहलहा दिया। तब तक 20 साल की उम्र में लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी का विवाह बेहद कर्मठ संस्कारी एवम हर कार्य में उनकी माता का हाथ बंटाने वाली विद्या देवी से सम्पन्न हुआ। विद्या देवी अत्यधिक पढ़ी लिखी नही थी परन्तु फिर भी हिसाब किताब की पक्की थी।
मनीराम जी (शीशों देवी के पति) दो भाई थे। एक खुद मनीराम जी और दूसरे छोटे भाई श्री शोभाराम थे। शोभाराम जी की चार बेटियाँ जिनके नाम श्रवण, चम्पा, मूर्ति, व भगवती, जिनमें से अभी सिर्फ एक भगवती जीवित है। शोभाराम जी को कोई बेटा न होने के कारण उनकी चारों बेटियाँ ही लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी को राखी बाँधती थी। चारों बहने उनका कभी नाम नही लेती थी उन्हें सिर्फ ‘भाई’ कहकर पुकारती थी। कुछ इस तरह से ‘भाई’ शब्द की शुरुवात हुईं। आज उन्हें पूरा गाँव एवम आस - पास के सभी गाँव उनके नाम से ज्यादा ‘भाई’ शब्द से जानते हैं। मात्र 16 साल की उम्र में इनका विवाह विद्या देवी से हो गया जो कि बहुत ही सरल स्वभाव की थी। नानीजी (विद्या देवी) बहुत सुंदर थी। मुझे उनके कमर पर लहराते या जुड़े में बंधे सुनहरे बाल बहुत पसंद थे। मैं अक्सर माँ से पूछा करती थी कि नानीजी के बाल सुनहरे क्यों हैं हम सबकी तरह काले क्यों नही। वो हमेशा कहती यह तो मुझे भी नही मालूम पर जबसे हमने होश संभाला हमने उनके बाल सुनहरे ही देखे हैं। पर कुछ भी हो उनके वो सुनहरे बाल खनकती आवाज बहुत ही सुंदर थी। शीशों देवी अपनी बहू से बहुत स्नेह रखती थी। नानाजी मतलब लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी का बचपन बड़ा ही कठिनाइयों में बीता। इनके पाँच भाई थे चौथे नम्बर पर लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी थे। बड़े भाई का नाम श्री मिट्ठन प्रसाद था। मिट्ठन गायन प्रतिभा के धनी थे। छोटी सी ही उम्र में इन्होंने घर त्याग दिया एवम भरतपुर राज्य के राजा सूरजमल के यहाँ संगीत शिक्षक के रूप में नौकरी कर ली। कहा जाता है कि यहां उन्होंने अपना नाम बदलकर मिट्ठन से रामधन रख लिया जो कि इनके फूफाजी का नाम था। जो बहुत ही विद्वान थे एवम घर - घर जाकर उस समय में गीता पाठ किया करते थे। मिट्ठन जी के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। इन्होंने जलमहल में रहकर बहुत से गीत भजन गायें एवम गायिकी विद्याएँ बहुत से विद्यार्थियों को सिखाई। लक्ष्मण स्वरूप शर्मा बहुत छोटे थे। मिट्ठन जी का गायिकी के प्रति रुझान अधिक था इसी कारण चलते वह राजा सूरजमल के बहुत ही करीबी रहे। राजा सूरजमल उनकी संगीत विद्या से बहुत प्रभावित थे। उनके गायन कला की जगह - जगह प्रशंसा की जाने लगी। परन्तु उनका यह लगाव धीरे - धीरे उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ने लगा था। अचानक से उनका गिरता स्वास्थ्य देख वह अपने ग्राम राजपुर लौट आये। वहाँ बहुत से उपचार किये गए। उनके उपचार के लिये धरती, गहने सभी गिरवी रखने पड़े। किंतु उन्हें बचाया न जा सका। एवम एक महान एवम साधारण व्यक्ति का अस्तित्व आसमां में विलीन हो गया। मिट्ठन से छोटे भाई थे प्रकाशी। प्रकाशी खेती का काम करके अपनी माता एवम मामा के संग हाथ बंटाने लगे थे। खाने खेलने और पढ़ने की उम्र में उन्होंने अपनी माता के संग मिलकर उनका हाथ बंटाना ही उचित समझा। उस समय खेती के लिये ज्यादा साधन नही हुआ करते थे। खेत जोतने के लिये जितने भी लोग हों कम ही पड़ते थे। क्योंकि दांति आरी तो थी परन्तु ट्रैक्टर थ्रेसर ये सब बाद में ही आये। उस समय बग्गी भी नही हुआ करती थी। न ही इतना धन की इन सभी चीजों को खरीदा जाए। किसान की जिंदगी बहुत मुश्किल से कटती थी तब। उस समय वजन बग्गी में नही कंधों पर लादकर घर तक लाया जाता था। एक दिन प्रकाशी भी खेत से घर कंधे पर वजन लेकर जा रहे थे, परन्तु आवश्यकता से ज्यादा वजन उठाने के कारण इनकी गर्दन मुड़ गयी और देहांत हो गया। यह इनकी माता जी के लिये असहनीय दुख था। पहले पति फिर दोनों बेटे जो खो दिए थे उन्होंने।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मर्मस्पर्शी..!

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