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सुंदरता एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों में बाँधना कठिन है। यह केवल देखने भर की वस्तु नहीं, बल्कि महसूस करने का एक भाव है। जब कोई फूल अपनी पूरी भव्यता में खिला होता है, जब सूरज की पहली किरण धरती को सोने सा नहलाती है, या जब किसी के मन की सच्चाई झलकती है, तब असली सुंदरता का आभास होता है।
दुनिया अक्सर सुंदरता को चेहरे की चमक, त्वचा की रंगत या शरीर की आकृति से जोड़ती है, परंतु वास्तविक सुंदरता इन सबसे कहीं गहरी होती है। यह ह्रदय की कोमलता, विचारों की पवित्रता और कर्मों की सच्चाई में छुपी होती है। जो आँखों से नहीं, दिल से देखी जाती है, वही सुंदरता सच्ची और स्थायी मानी जाती है।
प्रकृति इस गहरे अर्थ की सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है। पेड़ों की हरियाली, नदियों की कलकल धारा, पर्वतों का मौन और चाँद की शीतलता — ये सभी सुंदरता के ऐसे रूप हैं, जो न तो बनावटी हैं, न ही क्षणिक। वे सिखाते हैं कि सरलता में भी कितनी भव्यता होती है। एक साधारण मुस्कान, किसी के प्रति सहानुभूति, या निःस्वार्थ प्रेम — यही असली गहने हैं, जो इंसान को भीतर से सुंदर बनाते हैं।
समाज जब केवल बाहरी सौंदर्य को मापदंड बना लेता है, तब आंतरिक सुंदरता का महत्व कम होने लगता है। लोग चेहरों को संवारने में लगे रहते हैं, परंतु मन की सुंदरता की ओर ध्यान कम देते हैं। फिर भी, समय के साथ यह सच्चाई सामने आती है कि बाहरी आकर्षण क्षणिक है, पर सच्चा सौंदर्य, जो विचारों और भावनाओं से उपजा हो, वह चिरस्थायी होता है।
सुंदरता में विविधता का भी विशेष स्थान है। हर व्यक्ति, हर संस्कृति, हर परंपरा अपनी सुंदरता अपने अनोखे रंगों में बिखेरती है। विभिन्न भाषाएँ, वेशभूषाएँ, रहन-सहन के तरीके — ये सब मिलकर मानवता को एक अद्वितीय सौंदर्य प्रदान करते हैं। असल में, सुंदरता वह पुल है, जो विभिन्नताओं के बीच भी एकता का संदेश देती है।
जब मन में करुणा हो, जब वाणी मधुर हो, और जब कार्य परोपकार के लिए हों, तब व्यक्ति भीतर से चमकने लगता है। यही आभा असली सुंदरता है। इसे न समय मिटा सकता है, न कठिनाइयाँ कम कर सकती हैं।
सुंदरता तब खिलती है जब व्यक्ति स्वयं से प्रेम करता है, और दूसरों में अच्छाई देखना सीखता है। जब हम आँखों से नहीं, आत्मा से देखना शुरू करते हैं, तब दुनिया वास्तव में सुंदर दिखाई देती है।
इसलिए, सुंदरता को केवल बाहरी आवरण में न ढूँढें। उसे अपने भीतर जगाएँ, अपने व्यवहार में, अपने विचारों में, और अपने कर्मों में उतारें। क्योंकि असली सुंदरता वही है, जो देखने वाले के दिल को छू जाए और स्वयं भी अनंत काल तक महकती रहे।
डॉ. ऋषिका वर्मा
गढ़वाल उत्तराखंड