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बम्बई ट्रेनिंग सेंटर की स्मृतियाँ - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

बम्बई ट्रेनिंग सेंटर की स्मृतियाँ

  • 79
  • 20 Min Read

'' बम्बई ट्रेनिंग सेंटर '' की स्मृतियाँ

बैंक में, बम्बई स्थित " संयुक्त ट्रेनिंग सेंटर "की बहुत चर्चा होती रहती थी.काफी समय पूर्व की बात है. तब बम्बई
" मुम्बई " नहीं हुआ था..
"वर्ली सी लिंक " भी नहीं बना था.

वहां हमारे बैंक और एक अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक के साथ, संयुक्त ट्रेनिंग सेंटर, नेपियन सी रोड पर था.यह केवल अधिकारी वर्ग के लिए ही, था. देश भर से, कुछ अधिकारी ही, इस ट्रेनिंग के लिए नामित किये जाते थे.

बाद में तो प्रायः सभी राज्यों की राजधानियों में क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित हो गये. जहां ट्रेनिंग पर भेजना, शाखाओं के लिए अपेक्षाकृत आसान और कम खर्चीला हो गया.

मुझे पहली बार 1987 में बम्बई ट्रेनिंग का अवसर मिला. यह एक विशिष्ट और अविस्मरणीय अनुभव था.
मेरी बम्बई शहर की भी यह पहली यात्रा थी. ए सी में रिजर्वेशन था. तब एक ही ए सी डिब्बा लगा था, उस ट्रेन में., मेरा भी यह पहला अनुभव था. अतः उत्साह भी था.अच्छा लग रहा था.

मेरे साथ डी ए वी डिग्री कालेज के एक प्रोफ़ेसर, सपत्नीक यात्रा कर रहे थे. वे अपनी पत्नी को कीमोथेरेपी के लिए, बम्बई ले जा रहे थे. मेरी लोअर बर्थ थी, उन्होंने मुझसे अपनी अपर बर्थ, बदलने का अनुरोध किया, क्योंकि पत्नी के साथ, उनको बार बार जाने में कुछ सुविधा रहे. मैंने तुरंत स्वीकार कर लिया.

रात्रि के समय, स्व: मोतीलाल वोहरा जी, जो उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने ने भी कुछ घंटों के लिए, उसी डिब्बे में यात्रा की, उस समय कुछ चहल-पहल हुयी. उसी से पता चला.

बम्बई शहर के बारे में बहुत कुछ सुना और पढ़ा था. बम्बई की झोपड़पट्टियां, वहां की चाल, स्लम एरिया.. और फ़िल्मी - दुनिया की चमक - धमक., की धोखाधड़ी के किस्से..!


ट्रेनिंग सेंटर में बैंक के बहुत अच्छी, शैक्षणिक योग्यता वाले अधिकारी, जिन्हें अध्यापन में भी रूचि हो, हमारे बैंक से ही, 4-5 वर्षों के लिए, नियुक्त किए जाते थे. बाद में वे पुनः शाखाओं और बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों में ट्रांसफर हो जाते थे. सेंटर में एक सम्रद्ध पुस्तकालय भी था.


ट्रेनिंग कोर्स भी विशिष्ट विषयों पर ही होते थे. जैसे बहुत बड़ी परियोजनाओं का वित्त-पोषण, स्माल स्केल इंडस्ट्रीज की इकाइयों का वित्त - पोषण,'' रुग्ण हो गयी इकाइयों का वित्त पोषण और पुनर्स्थापना. ''

फारेन एक्सचेंज के विशिष्ट कोर्स,और भी विभिन्न कोर्स.
फैकल्टी के सभी सदस्यों का व्यवहार बहुत अच्छा रहता था और वे हमेशा विषयों को बहुत रोचक और सरल बनाने का प्रयास करते थे.
बम्बई जैसे शहर में, बहुत बड़ी-बड़ी परियोजनाएं होती थीं और फैकल्टी के लोगों का विषय का ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव भी इसी के अनुरूप होता था.
कक्षा में छात्रों की संख्या सामान्यतः 25 से अधिक नहीं होती थी अतः सब व्यक्तिगत रूप से, एक दूसरे से परिचित हो जाते थे. क्लास अच्छे से चलती थी.

चाय और दोपहर का भोजन, सेंटर में ही होता था. सब लोग साथ ही होते थे.
कम से कम दो सप्ताह की ट्रेनिंग होती थी. 10 से 5 का समय रहता था.

बाकी समय हम लोग बम्बई शहर में घूमते रहते थे.
हम लोग प्रायः एक पारसी के लाज ' जेन्सन-लाज में ठहरते थे. इस विषय में सुना था कि सुरक्षित स्थान रहेगा. होटल ढूंढ़ने का झंझट भी नहीं रहेगा.

एक कमरे में दो लोग रहते थे. दूसरा सदस्य दूसरे बैंक का अधिकारी होता था. सबको कम्पनी भी मिल जाती थी. और हम सुरक्षित भी अनुभव करते थे. घर से पत्र आदि का आदान-प्रदान भी हो जाता था. हर सुबह, लाज के स्वामी, पारसी भद्रपुरुष..शायद पटेल कहलाते थे, लोबान की धूनी लेकर हर कमरे में आते थे, अच्छा लगता था.

लाज में कपड़े धोना मना था. एक लान्ड्री वाले कपड़े ले जाते थे. लाज के स्वामी वैसे अपने नियमों में स्ट्रिक्ट थे लेकिन, लाज में आने जाने के समय की कोई पाबंदी नहीं थी. हम लोग शहर घूमते- फिरते अक्सर रात देर से जाते थे.

आने-जाने का रिजर्वेशन बैंक द्वारा ही हो जाता था. वर्ना रिजर्वेशन मिलता ही नहीं. तब आन - लाइन तो था नहीं.
ऐसा नहीं था कि ट्रेनिंग के बाद सभी लोग उन विषयों में पारंगत हो जाते हों. किन्तु एक व्यापक द्रष्टिकोण तो हो ही जाता था. कुछ, अनिवार्य प्रारंभिक जानकारियां भी मिल जाती थीं.

बाकी कहा जाता था. कि व्यावहारिक ज्ञान प्रायः व्यावहारिक अनुभव से ही आता है. और उसका कोई विकल्प नहीं है. ट्रेनिंग से हमें केवल एक वैचारिक दिशा मिल सकती है और विषय की सम्यक जानकारी. बाकी कुछ भाग्य, कुछ अन्तःद्ष्टि, कुछ ऋण लेने वाले की मानसिकता और परिस्थितियों पर निर्भर रहता है.

कमलेश वाजपेयी
नोएडा

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सीमा वर्मा

सीमा वर्मा 1 year ago

बेहतरीन सर 🙏

Kamlesh Vajpeyi 1 year ago

जी. धन्यवाद और आभार

दादी की परी
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