कवितानज़्म
रहगुज़र में गुबार-ओ-गर्द जहाँ-तहाँ बाक़ी है
कारवाँ निकल गया कदमों के निशां बाक़ी है
राह-ए- सफ़र मरहलों पर खाली पड़े हैं मकां
चूल्हों में आग है बुझी हुई मग़र धुआं बाक़ी है
खरीददार कोई नहीं है इन खाली रास्तों पर
खरीदी की इंतज़ार में यहाँ वहाँ दुकां बाक़ी है
दरख्तों के साये में लगे हुए तम्बू हुए फटेहाल
जाने कितने उजड़ेहुए मंज़र कहाँकहाँ बाक़ी है
@ "बशर" بشر