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मदहोशी जैसे हो गए हैं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मदहोशी जैसे हो गए हैं

  • 60
  • 1 Min Read

पड़ौसी भी अपने परिवार जैसा होता था
अब परिवार भी पड़ौसी जैसे हो गए हैं!

हर कोई इस क़दर स्क्रीनशो में मश्ग़ूल है
ये मोबाइल भी मदहोशी जैसे हो गए हैं!

@"बशर"

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