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कवितानज़्म
पड़ौसी भी अपने परिवार जैसा होता था अब परिवार भी पड़ौसी जैसे हो गए हैं! हर कोई इस क़दर स्क्रीनशो में मश्ग़ूल है ये मोबाइल भी मदहोशी जैसे हो गए हैं! @"बशर"