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कवितानज़्म
गुस्सा आ जाए जरा रुक जाओ गलती हो जाए जरा झुक जाओ उलझी हुई बात गर सुलझ जाए मु'आफी मांगने में मत शरमाओ © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر