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कवितानज़्म
आदमीको आदमियत का बड़ा गुमान था इन्सान को इन्सान होने का इत्मीनान था अब जो पत्थर की मूरत बना बैठा है बशर वोह भी पहले किसी ज़माने में इन्सान था © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر