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कवितानज़्म
शहर के सपनों ने बर्बाद करके रख दिए हम अपने गांव के अपनों से भी गए, शहर से गांव की रूखी सूखी अच्छी थी यहां आकर गांव के सपनों से भी गए! @"बशर"