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महान वैज्ञानिक नंबी नारायणन मेरे पसंदीदा व्यक्तित्व हैं।वे आपके भी अवश्य पसंदीदा व्यक्तित्व होंगे, जब आप उनके संघर्ष की इस गाथा को जान पाएंगे।
वेे तब खबरों मे आये जब प्रख्यात अभिनेता आर. माधवन ने उनके जीवन पर बायोपिक की घोषणा की।फिर तो 2019 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित भी किया और केरल सरकार ने उन्हें 1.30 करोड़ रूपये मुआवजा दिए जाने की घोषणा की है,उस संघर्ष, दर्द और अपमान के बदले…जो उन्होंने 26साल तक झेला।
अभिनेता आर.माधवन ने कहा," देश के 95% लोगों को नंबी नारायणन के बारे में पता नहीं होगा, जो मुझे लगता है कि अपराध है और जो 5% लोग उनके बारे में जानते हैं, वे उनकी पूरी कहानी नहीं जानते।यह उस व्यक्ति की कहानी है, जिसके साथ अन्याय हुआ, उसे झूठे आरोपों में जेल भेजा गया था।
"आइए, जानते हैं कौन हैं नंबी नारायणन।"
नंबी नारायण एक रॉकेट वैज्ञानिक हैं जो न केवल एक साज़िश का शिकार हुए बल्कि लचर कानूनी व्यवस्था, मीडिया और फिर समाज के भी शिकार हुए।। इनके साथ और भी थे, उन्होंने हार मान ली,नंबरी ने हार नहीं मानी, अकेले लड़े, और जीते।
नंबी का जन्म तमिलनाडु के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।नंबी पांँच बहनों के छोटे भाई थे। इनकी मांँ गृहिणी थीं और पिता व्यापारी थे। लंबी एक मेधावी छात्र थे ,इन्होंने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की और एक शुगर फैक्ट्री में नौकरी पर लग गए।
ये महज 18 वर्ष के थे, जब इनके पिता का देहांत हो गया, बीमार माँ और शादी लायक दो बहनों की ज़िम्मेदारी इन पर आ गई।
1966 में इन्हें इसरो में पेलोड इंटीग्रेटर के पद पर नियुक्ति मिली।उस वक्त इसरो अपनी शुरूआती दौर में ही था।यहाँ इन्हें विक्रम साराभाई का सानिध्य मिला, जो उस समय इसरो के चेयरमैन थे।उस समय इसरो स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर के नाम से जाना जाता था।
समय ने करवट ली और नंबी को नासा से बुलावा आया। यहां उन्हें अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में एम.टेक करने का प्रस्ताव मिला।ये फेलोशिप पर वहाँ गये और प्रोफेसर लुइगी क्रोको के साथ केमिकल रॉकेट प्रोपल्शन अर्थात रॉकेट के ऊपर लगने वाली वह शक्ति, जो उसे गुरूत्वाकर्षण के विरुद्ध चलायमान रखती है, पर काम किया।
यहाँ उन्हें एक अच्छी नौकरी का प्रस्ताव भी मिला लेकिन नंबी उसे ठुकरा कर अपने देश वापस आ गए।लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम पर उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी।भारत को उन दिनों इसकी अत्यंत आवश्यकता थी, क्योंकि उस समय तक भारत सॉलिड प्रोपैलेंट्स पर ही निर्भर था।
नंबी जानते थे कि यही लिक्विड प्रोपैलेंट्स भारत की स्पेस एजेंसी का भविष्य है।ये वही समय था, जब एपीजे अब्दुल कलाम सेटेलाइट लांच व्हेकिल पर काम कर रहे थे।
1992 में, भारत ने रुस के साथ एक संधि की। जिसके तहत यह तय हुआ कि रुस भारत को क्राइयोजेनिक फ्यूल टेक्नोलॉजी देगा जो क्राइयोजेनिक ईंधन, सालिड और लिक्विड ईंधन से बहुत बेहतर आउटपुट देता है,वह भी कम खपत पर और बेहद न्यूनतम तापमान पर।
यही से सारा मसला शुरु हुआ। उन दिनों जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति थे। अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत और रूस के बीच यह संधि हो।उसने रूस पर दबाव बनाया और रूस झुक गया। तब भारत ने रुस के साथ एक नई संधि की, जिसके तहत रूस भारत को टेक्नोलॉजी तो नहीं, लेकिन चार क्राइयोजेनिक फ्यूल बेस्ड ईंजन और दो डिज़ाइन्स देगा।
अब नंबी नारायण ने जी जान से अपनी टीम के साथ इस लड़ाई को लड़ने के लिए कमर कसी ही थी कि 1994 की एक दोपहर पुलिस उनके घर आई और उन्हें अपने साथ ले गई। नंबी को बताया गया कि उनके बड़े अधिकारी उनसे बात करेंगे। नंबी बैंच पर बैठे इंतज़ार कर रहे ,दोपहर से रात हो गई। कोई मिलने नहीं आया। वहीं बैठे बैठे उनकी आँख लग गई।
सुबह आँख खुली तो खुद को गिरफ्तार पाया, जासूसी के आरोप में। उन पर आरोप था कि एक मालदीव की युवती के 'हनीट्रैप' मे फंसकर , ( जो कि एक महीना पहले पकड़ी गई थी) उन्होंने इस प्रोजेक्ट के महत्वपूर्ण दस्तावेज करोड़ों मे बेच दिये है। उनके साथ उनके साथी वैज्ञानिक डी. शशिकुमारन पर भी यही आरोप लगे ।
नंबी को 48 दिनो तक जेल मे बंद रखा गया। उनके घर की तलाशी ली गई।घर बेहद साधारण था।वहाँ पुलिस को कुछ नहीं मिल सका।लेकिन मीडिया के मुताबिक नम्बी और उनके साथी वैज्ञानिक अब देशद्रोही बन चुके थे।
उनकी ऑटोबायोग्राफी "रेडी टू फायर : हाऊ इंडिया एंड आइ सरवाइवड द इसरो स्पाई केस " के अनुसार , नंबी को निर्वस्त्र करके , हाथों मे हथकड़ी बाँधकर पीटा जाता, गुनाह कबूल करने के लिए । पुलिस कहती कि ईंजन की ड्रांइग्स बेची है तुमने, लेकिन ऐसी ड्रांइग्स तो एयरोनॉटिक्स की किताबों में आसानी से उपलब्ध थीं।जिसे पुलिस अनसुना कर देती। एक समय आया जब वे बेहोश होकर गिर गए , जहाँ से उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया।
जेल से छूटकर घर गए तो पत्नी को अवसादग्रस्त, मरणासन्न स्थिति में ज़मीन पर अंधेरे में पड़ी पाया ,नंबी को देखकर एक ह्रदय को चीरती हुई चीख उनके मुँह से निकली।
नंबी बताते है, उनकी पत्नी हर रोज़ मंदिर जातीं और प्रार्थना करतीं । एक दिन वापस आईं तो कहा, "अब से मैं मंदिर नहीं जाऊँगी।"
क्योंकि पंडित ने प्रसाद देने से मना कर दिया था।
1996 में केस सी.बी.आई के पास पहुुंचा जहां उन्हें और उनके साथी को निर्दोष पाया गया।
1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें और उनके साथी को निर्दोष माना।
1999 में नंबी और उनके साथी वैज्ञानिक का तबादला तिरुवनंतपुरम से किया गया और उन्हें डेस्क जॉब दी गई।
नंबी का इस मामले के पीछे की पूरी सच्चाई जानने और दोषियों को सजा दिलाने के और मुकदमा दायर करने पर कहना है कि,
" अगर दोषियों तक नहीं पहुँचे तो इससे भावी पीढ़ी मे गलत संदेश जायेगा।"
उन्हें निर्दोष पाते जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने 50 लाख रुपए बतौर मुआवजे का आदेश दिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 10 लाख बतौर मुआवजे का प्रस्ताव रखा।यह 2018 की बात है।
इस पूरे प्रकरण के पीछे किसका हाथ है,यह आज भी अज्ञात है। कहा जाता है कि ये अमेरिकी साजिश थी, क्योंकि वह भारत जैसे प्रगतिशील देश को आगे नहीं बढ़ने देना चाहता था और रूस उसके दबाव में था।
कहा यह भी जाता है कि यह केरल की आंतरिक राजनीति का खेल था। सत्तारूढ़ पार्टी को सत्ता से हटाने के लिए, विपक्षी पार्टी ने स्पाई स्कैंडल का सहारा लिया और उसे मीडिया में भरपूर उछाला।
जो भी हो, नंबी जैसी विशेष प्रतिभा का करियर तबाह हो गया। इसरो जिस मुकाम पर आज है, बहुत पहले होता।
नंबी आज भी संघर्षरत हैं। वे इस मामले की तह तक जाना चाहते है।
वे कहते है… "जीवन मे कई ऐसे पल आये, जब अपमान और घृणा से व्यथित होकर मैंने आत्महत्या करने की ठान ली थी। लेकिन मैं देशद्रोही की मौत नहीं मरना चाहता था। इतने साल….बस यही सच बताने के लिए ज़िंदा रहा।"
.कभी कभी ज़िंदगी पलक झपकते ही बदल जाती है…..मैं अब बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ, बोझ उतर गया है। मैं कभी देशद्रोही की मौत मरना नहीं चाहता था।"