कवितालयबद्ध कविता
तुम खो मत देना ये आज़ादी"
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तुम खो मत देना ये आज़ादी
पुरखों के बलिदानों की,
कफ़न बाँध के लड़े दीवाने
सरहद पे वीर जवानों की,
भूल न जाना जलियांवाला
वो लाशें निहत्थे इंसानों की।
तुम खो मत देना ये आज़ादी.......
सवा लाख से एक लड़ाया
गोबिंद वो वीर दुलारा था,
स्वाभिमान नहीं बेचा
क्योंकि हिंदोस्तां उनको प्यारा था,
खून से लिखा इंकलाब
उस भगतसिंह की जवानी की।
तुम खो मत देना ये आज़ादी......
तुम्हारे कल के लिए वो पास्ट बन गए
गोलीबारी,धमाकों में ब्लास्ट बन गए,
आज उनकी वजह से प्रथम हो यारों
वो आख़िरी,अंतिम, लास्ट बन गए,
वो बोस ,वो उधम सिंह
वो मर्दानी,झाँसी की रानी की।
तुम खो मत दें ये आज़ादी........
मिट गए मगर झुके नहीं
आँधी-तूफ़ानों में भी रुके नहीं,
क्यों खाई सीने पे गोली
ताकि खेल सको रंगों की होली,
थी उनकी भी चंपा-चमेली
है दाद उनकी अभिमानी की।
तुम खो मत देना ये आज़ादी .........
मंगल पांडे, दुर्गा,झलकारी
जाने कितनों की बलिदानी,
सरहद पे बहा वो लहू गवाह
मिटा के हस्ती बने निशानी,
नमन है उन जननी माँ ओं को
जिनके लालों की ये अमिट कहानी।
तुम खो मत देना ये आज़ादी..........
उनकी शहादत पे "दीप" जलाएँ
करें नमन सब हिंदुस्तानी,
वतन आन और बान सभी की
सजदे में यही सच्ची कुर्बानी,
नफ़रत का न हो वास दिलों में
हो वंदे मातरम की रवानी की।
तुम खो मत देना ये आज़ादी
पुरखों के बलिदानों की........!
कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"