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कवितानज़्म
हम बोल कर भी कुछ कह न सके वो ख़ामोश रहकर भी सब कह गए चुप्पी उन की यहाँ पर सब ने सुनी लफ़्ज हमारे सब अनसुने ही रह गए @ "बशर"